Friday, March 16, 2012

दिए के दिल से यूँ कराह निकली...

दिए के दिल से यूँ कराह निकली...
हवा शाम की वो जैसे बेवफा निकली...

वो जो मचल रही थी तरंग भीतर...
बस कुछ एक पल की चाह निकली...

जुस्तजू मौत की करते रहे हम...
जींद से दोस्ती उसकी बेपनाह निकली...

मंजिल की तलाश में हम तो होश में थे ...
क्या करते जो आवारा हमारी राह निकली...

दफ़न करने को दुनिया मुन्तजिर उसकी   ...
ढूढा तो वो मेरी रूह में जिन्दाह निकली..

जलते जलते फिर बुझ गया वो चिराग...
हवा शाम की वो जैसे बेवफा निकली...

भावार्थ...

1 comment:

Anonymous said...

मंजिल की तलाश में हम तो होश में थे ...
क्या करते जो आवारा हमारी राह निकली...
kya baat hai chaa gaye janab.nice lines.