Sunday, March 4, 2012

जिंदगी से दोस्ती की...

एक हद तक हमने उन दोस्तों  से दोस्ती की...
तन्हाई से  हुई वस्ल तो  जिंदगी से  दोस्ती की...

कब तक बीते कल की कैफियत में जीते हम....
हमारे आज ने  फिर आरहे कल से  दोस्ती की...

सब दोस्त अपनी दुनिया में  होते गए गुम...
वहशी ने फिर उस नाजनीन से दोस्ती की...

कहते भी तो किससे कहते जेहेन की हलचल...
तल्खियों ने मेरी  फिर इस ग़ज़ल से दोस्ती की...

कब तक बहलाते बीती यादों से   दिल को...
जीने को जिंदगी फिर मशीनों  से दोस्ती की...

कनक बे-असर और चांदी  फीकी थी उन दिनों...
बेसब्र तमन्नाओं के लिए कागज़ से दोस्ती की...

मैं अगर मैं था तो अपने दोस्तों  की महफ़िल में...
रिश्ते  निभाने को मैंने एक नए चेहरे से दोस्ती की...

एक हद तक हमने उन दोस्तों से दोस्ती की...

तन्हाई से हुई वस्ल तो जिंदगी से दोस्ती की...
भावार्थ...

1 comment:

Jolly said...

sahi hai....sab...its a good one!!dipped in the ink of heart