Tuesday, January 31, 2012

मेरी नन्ही सी परी छुई मुई...


मेरी नन्ही सी परी छुई मुई...
मेरी नन्ही सी परी छुई मुई...

रंगों को मिलें नए रंग इसके साथ....
खुशियों को आये ख़ुशी संग इसके साथ...
छु के इसको आज ऐसा लगा...
आज मैंने जैसे कायनात छुई...


मेरी नन्ही सी परी छुई मुई...


हँसे तो  सब खिलखिलाने लगे...
रोये तो दिल डगमगाने  लगे...
सबके दिल में है ये ऐसे बसी...
नन्ही जाँ आँखों का जैसे नूर हुई....

मेरी नन्ही सी परी छुई मुई...

भावार्थ


( To my daughter Avanatika ), Born on 24th Jan 2012, 9:12 PM


Monday, January 16, 2012

जुस्तजू मौत की इस कदर दोस्तो...

जुस्तजू मौत की इस कदर दोस्तो...
जिंदगी का नहीं अब असर दोस्तो...

जुस्तजू मौत की इस कदर दोस्तो...


कारवाँ था जो अब तक चलता रहा...
जूनून था जो लहू बन उबलता रहा...
मंजिल बन गयी अब सफ़र दोस्तो...
जिंदगी का नहीं अब असर दोस्तो...

जुस्तजू मौत की इस कदर दोस्तो...


बस एक जिंदगी और एक जान है...
जान जाए वतन पे तो ही  शान है...
जिन्दादिली है  मुख़्तसर दोस्तो...
जिंदगी का नहीं अब असर दोस्तो...


जुस्तजू मौत की इस कदर दोस्तो...

जिंदगी का नहीं अब असर दोस्तो...

भावार्थ...



Saturday, January 14, 2012

~! हाकिम नसीर ~!

आप गैरों  की बात करते हैं ...
हमने अपने भी आजमाए हैं...
लोग कांटो से बच के चलते हैं....
हमने फूलों से जख्म खाए हैं...

~! हाकिम नसीर ~!



लो बुझने चला है एक आदमी....

लो बुझने चला है एक आदमी....
किसी को फ़िक्र न किसी आँख में नमी...

जो अल्फाजों को संजोता रहा...
जो शेर की बाती पिरोता रहा...
जो दिन-ए-उम्र को खोता रहा...

फनकार को चाहने वालो की कमी...
लो बुझने चला है एक आदमी...


बुलंदी मिली और तन्हाई भी....
शोहरत मिली और रुसवाई भी....
उल्फत मिली और बेवफाई भी...

भुलाने लगी उसको खुद सरजमी...

लो बुझने चला है एक आदमी...


कभी नाम पे  कूचे चहकते तो थे....
जिक्र भर से दिल दहकते तो थे...
इश्क के गुलज़ार महकते तो थे...

वक़्त से गुमनाम हुआ वो आदमी...
लो बुझने चला है एक आदमी...

ये सिलसिला है चलता जाएगा....
एक का बाद कोई और आएगा....
दस्तूर दुनिया का न बदल पायेगा...

धधकती लौ दिए की कब है जमी...
लो बुझने चला है एक आदमी....

भावार्थ...

मुझे मालूम है मेरे अपने मशगूल हैं...

मुझे मालूम है मेरे अपने मशगूल हैं...
महीने हो गए उनकी आवाज़ सुने हुए...
और साल हो गयी उनको देखे हुए..
और वो साथ में गुज़ारे हुए लम्हों का एहसास...
वो तो बस एक याद भर है....


Impact of Technology over Human relationships....

Friends together > Meets frequently > Calls Frequently > Chat on google /Yahoo > Wait for "Like" tag on status update or Photo Update.....

( Time has really changed the meaning of togetherness and Friendship)






Friday, January 13, 2012

बारिश ले उडी उसकी सादगी से फुहार...

बारिश ले उडी उसकी सादगी से फुहार...
ओढ़े फिरती है उसकी अदाएं ये बहार...
काँच है कैसी उसकी आँखों जैसी ...
आँच है कैसी उसकी साँसों जैसी...
चांदनी ने माँगा रंग मेरी जाँ से उधार...
बारिश ले उडी उसकी सादगी से फुहार...


अंगार की तपिश उसके नैन-ओ- नक्स से
श्रृंगार की दमक उसके पैने से अक्स से...
मदहोशी-ए-शाम उसके इरादों से...
जन्नत-ए-जिन्द उसके वादों से...
तारों ने मांगी चमक मेरे यार से उधार...
बारिश ले उडी उसकी सादगी से फुहार...


बारिश ले उडी उसकी सादगी से फुहार...
ओढ़े फिरती है उसकी अदाएं ये बहार...

भावार्थ... 

Monday, January 9, 2012

मुक्त हो कर देख क्या होता सच में सुखी...

कितना फक्र है आँखों पे तुझको...
जरा तेजी से घूमा गर पहिया...
तो उल्टा फिरता दीखता तुझको...

कितन फक्र है नाक पे तुझको...
गर गंध हो हवा सी इर्द गिर्द...
तो कुछ न सूझता तुझको...

कितना फक्र है कान पे तुझको...
गर जरा बढ़ जाये शोर एक हद से...
कुछ न सुन पाए फिर तुझको...

कितना फक्र है जीभ पे तुझको...
गर पानी सा हो जो कुछ भी...
कुछ न स्वाद फिर आये तुझको...

कितना फक्र है छूने पे तुझको...
गर सुन्न हो जाए अंग कोई...
न फिर एहसास हो पाए तुझको...

कितनी बेबस है सोचो पञ्च-मुखी माया...
बाँधने चली है जो एक अजर अमर साया...

मूरख है तू हो हुआ जा रहा  बहि-मुखी...
अनंत मस्ती है जरा हो जा तू अंतर मुखी...

अनंत मस्ती है जरा हो जा अंतर मुखी...
मुक्त हो कर देख क्या होता सच में सुखी...

भावार्थ

Saturday, January 7, 2012

अजब मासूम लड़की थी...

अजब दिन थे मोहब्बत के...
अजब दिन थे रफाकत के...
कभी गर याद आ जाएँ तो...
पलकों पे सितारे झिलमिलाते हैं...
किसी की यादों में रात को अक्सर जागना मामूल था अपना...
कभी गर नीद आ जाती तो हम भी सोच लेते थे...
अभी तो हमारे वास्ते वो रोया नहीं होगा...
अभी सोया नहीं होगा...
अभी हम भी नहीं रोते...
अभी हम भी नहीं सोते...
सो फिर हम जागते थे और उसको याद करते थे...
अकेले बैठ कर वीरान दिल आबाद करते थे...
हमारे सामने तारो के झुरमुट में अकेला चाँद होता था...
जो उसके हुस्न के आगे बड़ा ही मांद होता था...
फलक पर रक्स करते अनगिनत सितारों को...
जो हर तरतीब देते थे तो उसका नाम बनता था...
अगले अगले रोज जब मिलते...
तो गुजरी रात की हर बेकली का जिक्र करते थे...
हर एक किस्सा सुनाते थे...
कहाँ किस वक़्त किस तरह  से दिल धड़का बताते थे...
मैं जब कहता की जाना आज तो में जाना...
में एक पल नहीं सोया तो वो कुछ नहीं कहती...
मगर नीद में डूबी उसकी दो झील सी आँखें बोल उठती थी...
में जब उसको बताता था मैंने रोशन सितारों में तुम्हारा नाम देखा था...
तो कहती तुम झूठ कहते हो...
सितारे मैंने देखे हैं समें तुम्हारा नाम लिखा था...
अजब मासूम लड़की थी...
मुझे कहती थी की अबन अपने सितारे मिल ही जायेंगे...
मगर उसे क्या खबर थी की किनारे मिल नहीं सकते
मोहब्बत की कहानी में..
मोहब्बत करने वालों की कहानी में सितारे मिल नहीं सकते...


Source:  Romantic Urdu Poem "Ajab Masoom Ladki Hai" in a beautiful voice of "RJ Hasni Naveed Afridi".
@ Youtube.com

कुछ न होने के एहसास से होता...

कुछ न होने के एहसास से होता...
कुछ होने का एहसास है...
दूरियां बतलाती है तुमको....
असल में तुम्हारे क्या पास है...
जिन्दादिली है तो जिंदगी है...
वरना जिंदगी एक जिन्दा लाश है...
हासिल हो जाना इक्तिफाक है...
जो हासिल न हो तो वही तलाश है...
माटी का पैरहन कुछ एक दिन...
हमेशा रहेगा वो अजर  का लिबास है...
होश क्या है अकल का जागते रहना...
अकल  भी किस कदर बदहवास है...
एक रोज गुज़र जाता है हर रोज...
ये सिलसिला भी क्या क्या ख़ास है...

भावार्थ

Friday, January 6, 2012

तुम ये समझी ना...

तुम ये समझी ना...
ये इश्क है क्या...
ये चाहत है क्या,...
एक तुम्हारे सिवा....

तुम से हूँ में....
मेरी जान है तू...
कैसे ये कहूं...
तुम हो मेरी क्या....

तुम हो मेरी....
ये सब ने कहा....
ये जग ने कहा...
अब जाओ समझ...

तुम ये समझी ना...
ये इश्क है क्या...
ये चाहत है क्या,...
एक तुम्हारे सिवा....

भावार्थ...

Written down based upon Music in Movie Sex&Philosophy ( Iran, 2005)  directed by Mohsen Makhmalbaf.

Listen to that at : http://www.youtube.com/watch?v=VBOpS6FNASI

ये उम्मीद न थी...

ये उम्मीद न थी...
कि वो नहीं आयेगी...
ये उम्मीद न थी...
कि वो रुलाएगी...
जो कभी मुस्कुराने का सबब थी...
जो कभी खुदा थी कभी रब थी...
जिसकी मोहब्बत मेरा पैरहन थी...
जो मेरी निखत मेरी अंजुमन थी...
जिसने मिलने को कभी मीलो कि दूरियां तय की थी...
दुनिया कि तोहमतें और  मजबूरियां तय की थी...
कदम कुछ न चल पाएगी...
ये उम्मीद न थी...
कि वो नहीं आयेगी...
मुझे उम्मीद न थी...
कि वो रुलाएगी...
मुझे उम्मीद न थी...

भावार्थ...

Monday, January 2, 2012

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से... !!!

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से...
मैं हूँ गर बेसहारा तो बस खुदी से...

काठी को काया समझता रहा...
माटी को माया समझता रहा...
भीतर ही भीतर मैं फिरता रहा...
मैं हूँ गर बंजारा तो बस खुदी से...

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से..
मैं हूँ गर बेसहारा तो बस खुदी से...

मैं तड़पता हूँ तो अपनी हर एक चाह में...
मैं डरता हूँ तो मन की हर अँधेरी गाह  में...
मैं बहकता हूँ तो तमन्नाओ की  राह में...
में हूँ गर आवारा तो बस खुदी से...

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से..
मैं हूँ गर बेसहारा तो बस खुदी से...

मैं वो नहीं जो मैं मानता हूँ...
सच वो नहीं जो मैं जानता हूँ...
कुछ तो  है फिर जो मैं छानता हूँ...
मैं हूँ गर दूर जा रहा तो बस खुदी से...

मैं हूँ गर हारा तो बस खुदी से...
मैं हूँ गर बेसहारा तो बस खुदी से...

भावार्थ...

राधिका से जब ये नैना लागे रे... !!!

राधिका से जब ये नैना लागे रे...
कान्हा अब सारी-२ रैना जागे रे...

बिसुरी सुध और बंसी गुमाई...
बन बन फिरे होए जग में हंसाई...
बेकल जी अब ये चैना मांगे रे...
राधिका से जब ये नैना लागे रे...

राधिका से जब ये नैना लागे रे...
कान्हा अब सारी-२ रैना जागे रे...

माखन भूला और ग्वाले भुलाए...
भोली सुरतिया जी कैसे भुलाये...
काँटा पिरतिया का ये पैना लागे रे...
राधिका से जब ये नैना लागे रे...

राधिका से जब ये नैना लागे रे...
कान्हा अब सारी-२ रैना जागे रे...

भावार्थ...

Sunday, January 1, 2012

मिजाज़

मिजाज़ इस साल का कुछ ठीक नहीं लगता...
फूंस ऐसे बरस रहा है जैसे  सावन हो...
अलावों  में कोयले विभीषण निकले...
कोहरे में छिपा  जैसे बारिश का रावन हो...

भावार्थ...

जब लाद चलेगा बंजारा...

तू खिर्स-ओ-हवस को छोड़ मियाँ...
मत देश-प-देश फिरे मारा...
कजाक अज़ल का लूटे है...
दिन रात बजा कर नक्कारा...
क्या बधिया भैसा बैल सुतर....
क्या गोई पल्ला सर फारा...
क्या गेहूं चावल मोठ मटर...
क्या आग धुआं क्या अंगारा...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


गर तू है लख्खी बंजारा...
और खेप भी तेरी भारी है...
ए गाफिल तुह्झ्से भी चढ़ता...
एक और बड़ा व्यापारी है...
क्या शक्कर मिश्री कंद गिरी...
क्या साम्भर मीठा खारी है...
क्या दाख मुन्न्क्का सोठ मिर्च...
क्या केसर  लॉन्ग सुपारी है...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


ये बधिया लादे बैल भरे...
जो पूरब पश्चिम जावेगा...
या सूद बढ़ा के लावेगा...
या टोटा घाटा पावेगा...
कजाक अज़ल का रस्ते में...
जब भाला मार गिरावेगा..
धन दौलत नाती पोता क्या...
एक कुम्भा काम न आवेगा...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


हर मंजिल में अब साथ तेरे...
ये जिनिया डेरा डाला है..
जर दरम दीनार का भांडा है...
बन्दूक से पर और खांडा है...
जब नायक तन का निकल गया...
वो मुल्को मुकों बांडा है...
फिर हांडा है न भांडा है...
हलवा है न मांडा है...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


जब चलते चलते रस्ते में...
ये गौण तेरी ढल जायेगी...
एक बधिया तेरी मिटटी पे...
एक घास न चरने आवेगी...
ये खेप जो तुने लादी है...
सब हिस्सों में बाँट जावेगी...
धी पुत जमाई बेटा क्या....
बंजारन पास ना आवेगी...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


ये खेप भरे जो जाता है...
ये खेत मियाँ मत गिन अपनी...
ये कौन घडी किस हाल में...
ये खेप है बस खपनी...
क्या थाल कटोरे चांदी के..
क्या पीतल की डिबिया ढपनी..
क्या बर्तन सोने रोपये के...
क्या मिटटी की हंडिया चपनी...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...

जब लाद चलेगा बंजारा...


कुछ काम न आवेगा तेरे...
ये लाल जमूरत सीमो जर...
जब पूजी बात में बिखरेगी...
फिर आन बनेगी जान ऊपर...
नकारे नौबत बाण निशाँ...
दौलत हज्मत फौजे लश्कर...
क्या मशंत तकिया मिल्क मकान...
क्या चौकी कुर्सी तख़्त छप्पर...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


क्यों जी पर बोझ उठाता है...
इन गौनो भारी भारी के...
जब मौत का डेरा आन पडा...
फिर दुने हैं व्यापारी के...
क्या साज सजाओ जर जेवर...
क्या गोटे ठान किनारी के...
क्या गोदे जींद सुनहरी के...
क्या हाथी लाल अमारी के...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


मगरूर न हो तलवारों पर...
मत फूल भरोसे ढालों के...
सब पट्टा तोड़ के भागेंगे...
मूह देख अज़ल के भालों के...
क्या डब्बे मोती हीरों के...
क्या ढेर खाजाने  मालों के...
क्या बुक्चे ताश मुसज्जर के...
क्या तख्ते शाल दुशालों के...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...




क्या सख्त मकान बनवाता हैं...
ख़म तेरे बदन का है पोला...
तू ऊँचे कोट उठाता है...
वहां घोर घने ने मूह खोला...
क्या रैनी खंदक रंग बड़े...
क्या बुर्ज कंगोरा अनमोला...
गढ़ रोल अकल्ला तोप कला...
क्या शीशा दारू और गोला...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


हर आन नफे और टोटे में...
क्यों मरता फिरता है बन बन...
टुक काफ़िल दिल में सोच जरा...
साथ लगा तेरे दुश्मन....
क्या लौंडी बंदी दाई दवा...
क्या बंद चेअल नेक चलन...
क्या मंदिर मस्जिद ताल कुए...
क्या घाट चरा क्या बाग़ चमन...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...
जब लाद चलेगा बंजारा...


जब मर्द फिर के चाबुक को...
ये बैल बदन का हाकेंगा...
कोई नाज़ समेटेगा तेरा...
कोई गौण सिये और टान्केगा....
हो ढेर अकेला जंगल में...
तू ख़ाक लहद की फांकेगा...
उस जंगल में फिर आख नजीर..
एक फुन्गा आन न झांकेगा...


सब ठाठ पड़ा रह जावेगा...

जब लाद चलेगा बंजारा...




नजीर अकबराबादी !!!

नव-वर्ष को हार्दिक शुभकामनाएं !!!

गर दर्द-ए-आम  एक सवाल हो...
काश न ऐसा कोई साल हो...

हुकुमरान कैद में नज़र आयें...
बाशिंदे गैल पर नज़र आयें...
भ्रष्ट क़ुतुब पे तुलिका बजायें...
गर रोज इतना ही बवाल हो...
काश न ऐसा कोई साल हो...

कोई भूख अब असहनीय हो गयी...
क्यों दाल-सब्जी पकवान हो गयी...
क्यों हरित देश से हरियाली खो गयी...
गर आबादी का ऐसा हाल हो..
काश न ऐसा कोई साल हो...

क्यों बच्चे शिक्षा की कतारों में हैं...
शिक्षा बिहीन शिक्षित हजारों में है...
गुरुकुल का खाब बस किताबों में है...
गर भारत का कल बदहाल हो...
काश न ऐसा कोई साल हो...

विछिप्त नहीं हो तुम बस सोये हो...
कनक पे पीतल का पर्दा संजोये हो...
शक्ति भूल खुद की माया में खोये हो...
हर दिल में जुनूँ हाथ में मशाल हो...
काश आने वाला ऐसा हर साल हो...

बसखुद को बदलने का ख्याल हो..
काश आने वाला ऐसा हर साल हो...

भावार्थ
( नव-वर्ष को हार्दिक शुभकामनाएं)