Tuesday, December 6, 2011

कितना हसीन गुनाह किये जा रहा हूँ मैं...

दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ में...
कितना हसीन गुनाह किये जा रहा हूँ मैं...

मुझ से लगे है इश्क की अज़मत को चार चाँद....
खुद हुस्न को गवाह किये जा रहा हूँ मैं..

गुलशन परश्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़...
काँटों से भी निभाह किये जा रहा हूँ मैं...

मुझसे अदा हुआ है जिगर जुस्तजू का हक...
पर जर्रे को गवाह किये जा रहा हूँ मैं...

जिगर मुरादाबादी !!!


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