Thursday, December 15, 2011

इब्तिदा-ए-इश्क !!!

कुछ लिखने की चाहत हो तो  हर्फ़ बदल जाएँ...
ब्रुश से रंगने की चाहत हो तो रंग बदल जाएँ...
अजनबी से मिलने की चाहत हो  तो   ढंग बदल जाएँ...
तो समझो इब्तिदा-ए-इश्क है  ...

उसकी खुशबू  तुम्हें खुद के पेहरन में आने लगे...
उसकी तपिश का एहसास खुद कि बाहों में आने लगे...
उसका अंदाज़-ए-बयाँ तुम्हें अजनबी में भी नज़र आने लगे...
तो समझो इब्तिदा-ए-इश्क है...

उसके जाने के बाद लगे कि एक बार बस वो फिर आये...
झूठे मूठे सपने ही सही उनको दिखाने वो फिर आये...
खुद के होने का यकीं दिलाने को लगे कि वो फिर आये...
तो समझो इब्तिदा-ए-इश्क है... 

भावार्थ ...
 













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