Tuesday, November 22, 2011

तोड़कर अहद-इ-करम न आशना हो जायिए.. !!!

तोड़कर अहद-इ-करम न आशना हो जायिए..
बंदा परवर जाईये अच्छा खफा हो जायिए...

राह में मिलिए कभी मुझ से तो अजरा-ए-सितम
होठ अपने काट के फ़ौरन जुदा हो जाईये..

जी में आता ही उस शोख-इ तगाफुल केश से..
अब न मिलिए फिर कभी और बेवफा हो जाईये...

हाय री बे-इख्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर..
उर सरापा नाज़ से क्यों कर खफा हो जाईये...

तोड़कर अहद-इ-करम न आशना हो जायिए..
बंदा परवर जाईये अच्छा खफा हो जायिए...

जोश मलीहाबादी !!!

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

........जानदार शेर .....उम्दा ग़ज़ल