Thursday, November 24, 2011

नज़्म उलझी हुई है सीने में...

नज़्म उलझी हुई है सीने में...


मिसरे अटके हुए है होंठो पर...

उड़ते फिरते हैं तितलियों की तरह...

लफ्ज़ कागज़ पे बैठते ही नहीं...

कब से बैठा हुआ हूँ में जानम...

सादा कागज़ पे लिख के नाम तेरा...

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है...

इस से बेहतर भी नज़्म क्या होगी?

गुलज़ार  !!!



No comments: