Saturday, November 13, 2010

दौर बदले तो क्या !!!











कोई तो लिहाफ उढ़ा दे मुझे ...
सर्दी से भरे हैं ये काले बादल...
बरस के गए हैं अभी अभी...
लगता है रूह निचोड़ देगी ये सर्दी ...

कोई तो रौशनी दे मुझे...
दिन भर का धुआं धुंध बन गया है...
रास्तो की नसों में धुंध भरी है ...
लगता है लाठी उठानी पड़ेगी चलने के लिए ...

कोई हमदम हो जो साथ चले मेरे ...
ये बूढा अँधेरा जो कौने में बैठा है...
न जाने क्यों घूरता रहता है मुझे...
लगता है सहम के ही जिंदगी गुजरेगी...

कोई तो उम्मीद करना छोड़े...
सजने सवरनेऔर चमकने की...
जैसे जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है...
लगता है यु ही चलना होगा मुझे कई और सदियों तक ...

ठिठुर के...
अँधेरे में..
सहमते हुए...
चलना ही किस्मत है शायद रात की
और शायद औरत की भी !!!

...भावार्थ

1 comment:

Anonymous said...

it is how one percieves
koi aurat ki "kismat" kehata hai but i think it is aurat ki "himmat" that she keeps on moving!!