Sunday, November 7, 2010

बातियों की जुबान दीपावली !!!

आज बातियों को बतियाते देखा...
उनको भी दीवाली मनाते देखा...
दियो में बसी , तेल में लिपटी...
मद्धम लौ बिखेरती बातियाँ...

हवा के रुख से लहराती एक बोली...
सुना है आज राम घर लौटेंगे...
चैन की रातें सुख के दिन बीतेंगे...
राम राज की कोपले फूटेंगी...
कलयुग का अँधेरा छटेंगा ...
सुख का उजाला हर घर में बंटेगा...

दूसरी बोली तू कितनी भोली है...
कलियुग में भला राम राज कहाँ आएगा...
दिवाली तो व्यापार है बस चलता जायेगा...
कर्ज में दबा किसान लक्ष्मी पूजन क्या करे...
धन तेरस को चावल ले पेट भरे...
या चमकता हुआ नया बर्तन ले...
साबुन से बने दूध की मिठाई है बनी...
कैसे लक्ष्मी-गजानन उसको खाएं...
व्यापार की तेज आंधी चल रही है...
तू ही बता ये लोग कब तक हम को जलाएं...

और सिर्फ एक रात की बात है...
सुबह तक जी गयी तो खुशनसीब बन जाओगी ...
वरना अपने आप को किसी कूडे दान में पाओगी ...


...भावार्थ

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