Tuesday, October 19, 2010

सूखी बरसात !!!

समंदर ने रेत बोई मगर कुछ नहीं उगा...
सीप बिखर गए, गोल बत्थर रह गए...
किनारे पे जहाँ कभी हरियाली थी...
समंदर की जिद से बंजर बन के रह गयी...
रेगिस्तान देखता हूँ तो सोचता हूँ...
की समन्दर किन्तना जिद्दी था...
सहारा से लेकर थार तक...

...भावार्थ

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