Monday, August 23, 2010

राखी !!!

यु तो कही अक्स तेरे देखे हैं ज़माने ने...
बहन बनके जो किरदार निभाया है क्या खूब है...
...
वो बचपन के खेलों के निशाँ...
तेर तोहफों में मिले खिलौने...
लड़ने झगड़ने में घुला प्यार...
दोस्ती की हद का वो गुबार...
....
आज हर भाई अपनी कलाई पे बांधे फिरता है...
राखी की गाँठ बहुत गहरी है...
सालों का सफ़र बंधा है इसमें...

...भावार्थ

Saturday, August 21, 2010

मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो...

मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो...
मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे...
न जाने मुझे क्यों यकीं हो चला है...
मेरे प्यार को तुम मिटा न सकोगे...

मेरी याद होगी जिधर जाओगे तुम ...
कभी नगमा बन कर कभी बनके आंसूं...
तड़पता हुआ मुझे हर तरफ पाओगे तुम...
शमा जो जलाई है मेरी वफ़ा ने...
बुझाना भी चाहो बुझा न सकोगे...

मुझे
तुम नज़र से गिरा तो रहे हो ...
मुझे तुम दिल से बुला न सकोगे...

कभी नाम बातो में आया जो मेरा...
तो बैचेन हो कर दिल थाम लोगे...
निगाहों में छाएगा गम का अँधेरा...
किसी ने जो पुछा सबब आंसुओं का ...
बताना भी चाहो बता न सकोगे...

मुझे
तुम नज़र से गिरा तो रहे हो...
मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे...

गायक: मेहँदी हसन

Friday, August 20, 2010

उस दहलीज़ तक !!!


यु जो हर बात पे रूठ जाते हो...
फिर देर तक हमसे नज़रें चुराते हो...
मीठी सी मुस्कान लबो पे लिए...

मुझे हर दफा चिढाते हो...
मगर मुझो पता है
ये बहाने हैं पास आने के...
मुझे छूने के और प्यार पाने के...

मगर ये एक इस राज़ है
जिसकी सिर्फ मैं राजदार हूँ...
मेरे
बाद कौन समझेगा तुम्हारे इशारे...

बस
यही सोच कर डर लगता है...
कल क्या होगा जब में न रहूंगी ...
जिंदगी भर के हमसफ़र कुछ साल भर के हैं...

इसलिए कहती हूँ ..
उम्र ढल चुकी है...
छोड़ दो अब ये सब...
आदत तुम्हारी ये पुरानी है...
और पुरानी आदतें जल्दी नहीं छूटती...

...भावार्थ

Thursday, August 12, 2010

सोचता हूँ की वो कितने मासूम थे !!!

सोचता हूँ की वो कितने मासूम थे...
क्या से क्या हो गए देखते देखते...

मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम....
वो खुदा हो गए देखते देखते...

हश्र है वह्सहते दिल की आवारगी....
हमसे पूछो दिल की दीवानगी..
वो पता पूछते थे किसी का कभी....
लापता हो गए देखते देखते...

हमसे ये सोच कर कोई वादा करो...
एक वादे पे उमरें गुजर जायेंगी...
ये है दुनिया यहाँ कितने अहले-वफ़ा...
बेवफा हो गए देखते देखते...

दिन छुप गया सूरज का कहीं नाम नहीं है...
वादा शिकन अब तेरी अभी शाम नहीं है...
कल से बेकल हूँ जरा सा मुझे कल आये...
रोज का इंतज़ार कौन करे...
आपका इंतज़ार कौन करे...

गेर की बात तस्लीम क्या कीजिये...
अब तो ख़ुद पे भी हमको भरोसा नहीं...
अपना साया समझते थे जिनको...
वो जुदा हो गए देखते देखते...

...अनजान " शायर"


Friday, August 6, 2010

अर्ज़ !!!

वो इस अदा से झूठ कहा करती है...
कि उसकी हर बात सच लगा करती है...
मुझे मालूम है वो नाजनीन बेवफा है...
एक तरफ़ा मोहब्बत यु ही हुआ करती है...

काश पास हमारे भी तुमसे तरीके होते...
हमारी बातों में भी तुम्हारे से सलीके होते...
तुम्हे पाकर भी तुम्हे शायद पा सकता...
प्यार के कायदे भी कभी जो हमने सीखे होते...

लौट आ कब तक यादों से दिल बहलायेगा...
दिल का दिया कितनी रातों तक जलाएगा...
तस्वीर थी, बुत थी तेरा बहम थी वो...
जिंदगी जो न थी कब तक उसे जिए जाएगा...

कांच से कलाई पे मेरा नाम लिखती रही...
मेरे नाम से सुर्ख लकीरें निकलती रही...
मोहब्बत इतनी थी उसे मेरे नाम से...
अपने ही हाथो से मोम सी वो पिघलती रही...

...भावार्थ

कुछ !!!

आज की बात फिर नहीं होगी...
ये मुलाकात फिर नहीं होगी...
ऐसे बादल तो फिर भी आयेंगे...
ऐसी बरसात फिर नहीं होगी...
आज फिर तू हुआ मुझको महसूस...
क्या ये रात फिर नहीं होगी...
एक नज़र मुड़ के देखने वाले...
क्या ये खैरात फिर नहीं होगी...

जाने
वाले हमारी महफ़िल से ...
चाँद तारों को साथ लेता जा...
हम खिजाओं से निभा कर लेंगे...
तू बहारों को साथ लेता जा..

कोई हँसे तो तुझे गम लगे हंसी न लगे...
के दिल्लगी भी तेरे दिल को दिल्लगी न लगे ...
तो रोज़ रोया करी उठ के चाँद रातो में...
खुदा करी तेरा मेरा बिघैर जी न लगे...

राहत फ़तेह अली खान...