Friday, April 30, 2010

वो चली !!!

हया उसकी रह गयी पीछे...
वो बढ़ गई सरहद की तरफ...

तोड़ के सब पहरे...
छोड़ के सब जेवर...
पैरहन उम्मीद का ओढ़े...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...

नजरो में काज़ल की कसक ...
माथे पे सिन्दूर की लकीर...
कसम की कच्ची डोर से बंधी...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...

हर एक घुले राग को लिए ...
हर एक सजे अलफ़ाज़ को लिए ...
सुनने वालो के हुजूम को देख...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...

ग़ज़ल मेरी जो अनसुनी थी इधर...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...

हया उसकी रह गयी पीछे...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...

....भावार्थ

Friday, April 23, 2010

सीप !!!

हर जिंदगी इक सीप है ...
किसकी में मोती है तो किसी मैं नहीं...
किसी में सिर्फ रेत भरा है...
मगर हर सीप...
समय के समंदर में लहराता ...
किनारा पाने को आतुर है...
करोडो सीपों में से एक मोती वाला सीप...
कौन सा है ये , कोई नहीं जानता...
बिलकुल जिंदगी की तरह...

...भावार्थ

Thursday, April 15, 2010

तेरा चेहरा !!!


जन्नत का ख़याल जब भी मेरे दिल में आया...
तेरा चेहरा ही जेहने मैं मेरे बस तैरता आया...

मेरी रुकी जिंदगी को रास्ता दे कर ...
मेरे दर्द को आगोश मैं ख़ुद के लेकर ...

हर एक खाब तुने मेरा अपने दिल में सजाया...
जन्नत का ख्याल जब भी मेरे दिल में आया...
तेरा चेहरा.....

कुछ एक और रंग कोरे कागज़ पे भर कर...
बिखरी शख्शियत का मसीहा बन कर...

तेरा हाथ जब मेरे हाथ में मेरे हमसफ़र आया...
तेरा चेहरा ही जेहने मैं मेरे बस तैरता आया...
जन्नत का ख्याल ...

...भावार्थ

Wednesday, April 14, 2010

सिक्के !!!


गुल्लक रीती करो री लाडो...
"देहात" के सिक्के अब चलत नाही हैं...

"शहर"के नोट की बरसात है इतनी....
लोहे को अब कोई पूछत नाही हैं...

हर एक सिक्का याद थी रिश्ते की...
चोकलेट मिलत है सिक्का कोई देवत नाही हैं....

एक रुपये मैं भर भर पेट थे खाते...
अब सेकड़ो से भी कुछ होवत नाही है...

जब जब रूठे सिक्के थे मनाते...
अब उस प्यार से कोई मनावत नाही है...

स्कूल थे जाते तो हर रोज एक सिक्का...
अब उस ख़ुशी को कोई जीवत नाही है...

गुल्लक रीती करो री लाडो...
"देहात" के सिक्के अब चलत नाही है...

...भावार्थ