Monday, November 23, 2009

गुहार !!!

इस रास्ते को मेरे फूंक से उड़ा जिंदगी...
या फ़िर मंजिल की झलक दिखा जिंदगी...

तमन्नाओ के भवर गहराने लगे हैं...
समन्दर के किनारे अब दिखा जिंदगी...

रात ने परदे में है छुपा रखी चांदनी...
इक नज़र अंधेरे को इसकी दिखा जिंदगी...

गिनने लगा हूँ आसमा के तारे हर रोज...
नींद को आँखों की राह अब दिखा जिंदगी...

याद दफनाई है जमीं के नीचे मैंने उसकी...
अब पत्थर हुई आँखों को न रुला जिंदगी...

आज रात भर जलाई है उसकी यादे मैंने...
दर्द उसका सर्द दिल से मेरे मिटा जिंदगी...

अब हकीकत आईने में है या परछाई है...
हकीकत की अब हकीकत दिखा जिंदगी...

जीना भी एक सदा है या बस एक जरूरत है ...
जरूरत को न ऐसी जरूरत बना जिंदगी...

दांव पे दांव जो लगाया हर बार हारा हूँ ...
मुकद्दर को मेरे जुआरी न बना जिंदगी...

दर्द ने जिंदगी बख्शी है या जिंदगी ने दर्द...
इश्क उसका जिंदगी से अब मिटा जिंदगी...

मुझे जहर दे या दे फ़िर ख़ुदकुशी की सजा...
सजा-ऐ-मोहब्बत न कर अता जिंदगी...

इन रास्तों को मेरे फूंक से उड़ा जिंदगी...
या फ़िर मंजिल की झलक दिखा जिंदगी....

....भावार्थ !!!

1 comment:

Anonymous said...

दांव पे दांव जो लगाया हर बार हारा हूँ ...
मुकद्दर को मेरे जुआरी न बना जिंदगी...

दर्द ने जिंदगी बख्शी है या जिंदगी ने दर्द...
इश्क उसका जिंदगी से अब मिटा जिंदगी...
best lines hain ab tak ki!!