Thursday, September 24, 2009

जिद्दो-जहद !!!

आज खयालो में तुझको लिए...
पेन को साधे हुए...
डायरी के पन्नो को निहारता...
अपनी बालकनी में बैठा रहा...
सोचता रहा क्या लिखूं...
असल में सोचता रहा ...
की आख़िर क्या क्या लिखूं...
सुहानी यादो के अफ़साने ...
अल्फाजो में बिखेरूं कैसे....
तुझसे जुड़ी सौगातों को...
मन के धागे से बिखेरूं कैसे...
तेरी मूरत एक एक हर्फ़ बनकर कैसी लगेगी...
सादगी तेरी स्याही में घुल कर कैसी लगेगी...
नजाकत एक एक अल्फाज़ पे छायेगी...
तेरी हर एक अदा मेरे लिखने में आएगी...
मैं संभल पाऊँगा...
शायद यही सोच कर मैंने कलमा रख दी...
सोचता हूँ तू कविता बनी रहे ...
बस मेरे ख्यालों में महफूज़ रहे....
बस मेरे लिए...

...भावार्थ

2 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

सोचता हूँ तू कविता बनी रहे ...
बस मेरे ख्यालों में महफूज़ रहे....

Bahoot khoob.

Jolly said...

तेरी मूरत एक एक हर्फ़ बनकर कैसी लगेगी...
सादगी तेरी स्याही में घुल कर कैसी लगेगी...
नजाकत एक एक अल्फाज़ पे छायेगी...
तेरी हर एक अदा मेरे लिखने में आएगी...\
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सोचता हूँ तू कविता बनी रहे ...
बस मेरे ख्यालों में महफूज़ रहे....
बस मेरे लिए...
beautiful imaginative lines
really a cool one!good going!!