Thursday, July 2, 2009

पाप धुल गए !!!

आज फिर दर्द उठा...आज फिर माँ का एहसास हुआ...
गोवेर्धन की परिक्रमा लगाते छोटे छोटे पत्थर बहुत चुभे...
मगर कलेजे में एक नन्हा सा पत्थर मेरे सब पाप धुल गया...
इतने आंसू बहे की लगा ये समंदर भी मेरे भीतर रहता था...
माँ ने हाल क्या पूछ लिया छलक पड़ा बस 'उबाल' की तरह....

नसों मैं दर्द बहे तो लगता है कोई अपना साथ हो...
दुनिया के दर्द को तनहा सह सकते हो मगर इसे नहीं....
कोई हाथ सहलाता रहे, बालो मैं उँगलियाँ फेरता रहे...
और जैसे दर्द से ध्यान ही हट जाए कुछ एक पल को...

मगर चट्टान भी आख़िर पिघलती है...
तन्हाई के लावे मैं दर्द रफ़्तार पाता है...
और कलेजे की नस आँखों मैं असर छोड़ जाती है...
मैं करवटे बदलते हुए , अपनों को तरसते हुए ...
शुक्र गुजार था खुदा का की चलो 'पाप' धुल गए...

भावार्थ

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