Friday, May 22, 2009

संदूक !!!

कितनी चमक है इनमें...
सजे सजे से ये संदूक जो है यहाँ...
इनपे नक्काशी की है दुनिया ने...
इनको ऐसी जगह रखा है लोगो ने...
की सबकी निगाह इनपे ही रूकती है...
रंग इसके इतने रिझाते हैं की बाजार गर्म है...
बोलियाँ लगाते लोग, जश्न मनाते लोग...
टूटे फूल उडाते लोग, रस्म निभाते लोग ...
इन्ही संदूकों को घेरे खड़े है...
इस संदूक पे मगर एक ताला पड़ा है...
लोग आ-आ कर उस ताले को निहारते हैं...
और उस संदूक की सीरत को आंकते हैं...
मगर ताले के आस पास उखडा हुआ लोहा...
सुबकते हुए कुछ कह रहा है...
की ये संदूक जीको लोग बाज़ार में देख रहे हैं....
ये संदूक जो सजा धजा सा रखा है...
असल में रिश्तो का है !!!
जो चमक तो रहा है मगर भीतर से रीता है...

भावार्थ...

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