Wednesday, May 20, 2009

तबके खेलों में

अपनी तहजीब के जामे में रहा करते थे ,
हम भी , बेटे ,कभी कालेज में पढ़ा करते थे ,

पहले टयूशन की दुकाने भी नहीं होती थी ,
फिर भी हैरत है की हम टॉप किया करते थे ,

खुश्बुये ,हमको भी बैचैन बहुत करती थी ,
फिर भी हम आँखों से फूलों को छुआ करते थे

, अब तो शागिर्दों से उस्ताद डरा करते हैं,
पहले उस्तादों से शागिर्द डरा करते थे,

जाने किन चीखों से ज़ख्मी है ,वे फ़िल्मी गाने ,
घर में मिल बैठ के हम जिनको सुना करते थे ,

पहले फ्रिज ,टी।वी.औ'कूलेर भी नहीं थे घर में ,
फिर भी आराम से हम लोग जिया करते थे ,

अबके खेलों में तोह हरकत भी नहीं होती है ,
तबके खेलों में पसीने भी बहा करते थे.

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