Saturday, March 28, 2009

वाकया !!!

कैसे ये रुत बदली , फिजा बदली...
जो मद्धम हो चुकी थी वो हवा बदली...
तरसते पपीहे की चाह बदली...
निगोड़े भंवरे की निगाह बदली...
गुनगुनाने वाली की राह बदली...
रिश्तों के गुलज़ार में सुना है
एक और नया फूल खिला है ...

भावर्थ

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