Thursday, February 5, 2009

मंजर भोपाली !!!

आप से नहीं बिछडे जिंदगी से बिछडे है...
हम चिराग अपनी रौशनी से बिछडे हैं....
इससे ज्यादा क्या होगा साम्या मुकद्दर की...
जिससे भी मोहब्बत की हम उसीसे बिछडे हैं....
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सितमगरों का है फरमान की घर भी जायेगा...
अगर झूठ न बोला तो सर भी जायेगा...
बनाईये न किसी के लिए भी ताजमहल...
हुनर दिखाया यो दश्ते-हुनर भी जायेगा
माएं चलती है बच्चो के पाव से जैसे...
उधर ही जायेंगी बच्चा जिधर भी जायेगा....
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तुम्हारी बात कहाँ घाव भरने वाली है...
यही कटार तो दिल में उतरने वाली हैं...
वोह जा रहे हैं तो महसूस हो रहा है मुझे...
की रेल मुझे कुचल कर गुजरने वाली हैं...
हमारी टीवी फ़िल्म ये बता रहे हैं हमें...
हमारी मुल्क की तहजीब मरने वाली है...
ख़ुद ही सुधर जाईये तो बेहतर है...
न समझई की दुनिया सुधरने वाली है...
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मंजर भोपाली...

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