Friday, January 9, 2009

मंजर भोपाली ३ !!!

सितम करोगे सितम करेंगे ...
करम करोग करम करेंगे...
हमारी नीयत है तुम्हारी जैसी...
जो तुम करोगे वो हम करेंगे...

चलाये खंजर तो घाव देंगे...
बनोगे शोला अलाव दोगे...
हमें डुबोने की मत सोचना...
तुम्हे भी कागज़ की नाव देंगे...
कलम करोगे तो कलम करेंगे...
जो तुम करोगे वोह हम करेंगे...

तुम उठते हाथो को काट डालो...
की शहर लाशोसे से पात डालो...
फ़िर अगला मौसम हमारा होगा...
चमन का सरदा भी छांट डालो...
हम भी इससे न कम करेंगे...
जो तुम करोगे वो हम करेंगे...

गुलाब दोगे गुलाब देंगे...
मोहाबतो का जवाब दोगे...
खुशी का मौसम जो हमको देंगे...
तुम्हे गुलो की किताब देंगे ...
कभी सर को न कलम करेंगे ...

वो देखो जालिम की हार देखो...
ख़ुद की लाठी की मार देखो...
परो को सबके जो काटता है
समय की खंजर की धार देखो....
चलो जश्न अब हम करेंगे ...
जो तुम करोगे वो हम करेंगे...

हवाओ को अब लगाम देलो...
सुनो न चिंगारियों से खेलो...
मिली जो राई बनेगी पर्वत...
जरा हकीकत से काम लेलो...
सितम की बदले सितम करेंगे...
जो तुम करोगे वोह हम करेंगे...

अभी मकबर है रौशनी की
यऐ आस बाकी है जिंदगी की
अगर बुझाया अलाव तुमने...
न होगी एक बूँद रौशनी की...
चिराग कुछ हम भी कम करेंगे...
सितम करोगे सितम करेंगे....
जो तुम करोगे वो हम करेंगे...

न्याय तुमको पुकारता है...
सुनो जो तुममें उदारता है...
हमेशा जीती है आदमियत....
जो जुल्म करता है हारता है...
सितम का सर हम कलम करेंगे...
जो तुम करोगे वोह हम करेंगे...

मंजर भोपाली...

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