Tuesday, January 6, 2009

शोर परिंदों ने यु ही न मचाया होगा...

शोर परिंदों ने यु ही न मचाया होगा...
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा...

पेड़ के कांटने वालो को ये मालूम तो था...
जिस्म जल जायंगे जब सर पे न साया होगा...

मानिए जश्न-ऐ-बहार ने ये सोचा भी नहीं...
किसने कांटो को लहू पाना पिलाया होगा...

अपने जंगल से घबरा के उडे थे जो प्यासे...
हर सेहरा उनको समंदर नज़र आया होगा...

बिजली के तार पे बैठा तनहा पंछी ....
सोचता है की यह जंगल तो पराया होगा...

शोर युही न परिंदों ने मचाया होगा...
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा...

कैफी आज़मी !!!

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