Friday, January 16, 2009

जेरुसलम !!!

मौत जो कभी हादसा बनके आती थी...
आज कल बनके तबाही की ख़बर आती है....
जिन्दगी जो कभी जीने पे फक्र करती थी...
आज कल कोनो में छुपी नज़र आती है...
नई साल मौत का जखीरा ले कर आई थी...
जारी है अभी सिलसिले जाँ लेने के, जाँ देने के ...
हरी भरी जमी का सीना कब्रगाह हो चुका है...
पाक था जिसका जर्रा जर्रा वो अब तबाह हो चुका है...
कौन सी कसक है जो दर्द का गुबार लाती है...
बारूद में डुबोये हुए गोले कितने हज़ार लाती है...
मोहल्लो में अब सिर्फ़ मातम के नजारे हैं...
जर्द चेहरा है चाँद का दर्द में डूबे सितारे हैं...
आँखें आंसू सूख जाने की हद तक हैं रोती ...
बारहा ढूढती हैं उनको जिनसे वस्ल नहीं होती ...
जिंदगी अदनी सी लगती है अब तो मौत के आगे...
खुशी अब हर झूठी लगती है इस खौफ के आगे...
हर तरफ़ कफ़न में लपेटा हुआ सामान...
मलवे में से बदबू आती है कितने रोजो से यहाँ...
कोई तो आए जो इन कटे हाथो को,पेरो को उठा ले जाए...
खून जम चुका है ईटो पे पता ही नहीं चलता...
दीवार सुन्न हो गई हैं चीखों से यहाँ कोई नहीं बसता...
जिधर का रुख करुँ मौत ही मौत बिछी है...
खुदा तू ही बता कौन सी राह है जो मौत से बची है...
अल्लाह है भी या सिर्फ़ वहम है मेरा ...
न कोई रहम की भीख मिले न दिखे खुदा की करिश्माई...
न इबादतों का असर है न नमाजो में वो खुदा की खुदाई ...
जेरुसलम जो घर है दोनों के सपनो का...
बिखरा पड़ा है घरोंदा अब्राहिम के अपनों का...

...भावार्थ

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