Wednesday, December 31, 2008

कहते हैं नया साल नई ज़िन्दगी जैसा.....

आज फिर चाँद सूरज को निगल गया ,
आज का दिन भी बस यूँ ही निकल गया ,
कहते हैं नया साल नई ज़िन्दगी जैसा,
लेकिन क्या आज अपना कुछ भी बदल गया ?

आज भी रात खवाबों में तुम ही तो थे ,
आज भी सब गुलाबों में तुम ही तो थे ,
आज भी चाँदनी में में बैठी तो थी ,
आज भी ठंडी आँहों से दिल जल गया ,
कहते हैं नया साल नई ज़िन्दगी जैसा
लेकिन क्या आज कुछ भी बदल गया ?

आज भी ठण्ड में मैं सिमटती तो हूँ ,
आज भी चुपके चुपके सिसकती तो हूँ ,
आज भी तेरी तस्वीर आंखों में है ,
आज भी मेरा जैसा मेरा कल गया ,
कहते हैं नया साल नई ज़िन्दगी जैसा
लेकिन क्या आज कुछ भी बदल गया ।

में तुझसे बिछड़ के मरी तो नही ,
और रोई भी में हर घड़ी तो नही ,
आज भी तेरी यदून से जिंदा तो हूँ ,
आज फिर दिल मेरा यूँ ही संभल गया ,
कहते हैं नया साल नई ज़िन्दगी जैसा ............................

Tuesday, December 30, 2008

बे-इन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...!!!

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
दिन अधियारा और रात सर्द हो गयीं ..
आँखें हसीन मेरी जुदाई से जर्द हो गयीं...
खुशी एक एक कर सारी दर्द हो गयीं...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
तुमसे मिलने की तमन्ना और बढ़ गई...
याद तेरी हर एक जेहन में मेरे गढ़ गई...
दिल से उठी कसक आँखों में चढ़ गई...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
सिलवटे बिस्तर की चुभने लगी...
आगोश में तेरी कमी खलने लगी...
हसरतें तुझे पाने को मचलने लगी...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
लगा मेरी जिंदगी तेरी एक अमानत है...
तेरा एहसास मेरे दिल में सलामत है...
तेरी मोहब्बत भी मुझे एक इनायत है...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
लम्हे भी सदियों से लगने लगे ...
अक्स सारे तेरे सांचे से बनने लगे...
बादल मेरी आँखों से बरसने लगे...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...

भावार्थ...

Monday, December 29, 2008

कितने समंदर दिल में छुपाये होंगे !!!

उसने न जाने कितने समंदर दिल में छुपाये होंगे...
जब मुझसे मिल कर ये अश्क छलक आए होंगे...

उसके लबो में जान आ जाती है गमशुदा हो कर...
कितने ताले उसने थिरकते लबो पे अपने लगाये होंगे...

अंधेरे से डरती थी फ़िर भी वो मिलने आई मुझसे...
कितने चिराग यादो के उसने जेहेन में जलाये होंगे...

तनहा जो दो कदम भी चली नहीं जिंदगी की राहो में...
कोसो उसके नंगे पाव किस आस में चल आए होंगे...

लिबास में छुपे रहे उसके जो अदा और हुस्न के जलवे...
कैसे वो बे-परदा आस्तां से शहर में निकल आए होंगे ...

भावार्थ...

Sunday, December 28, 2008

तेरे चेहरे से बयान होते हैं...!!!

लब छुपाते है जिन राजो को वो आंखों से बयान होते हैं...
जेहेन में उमड़ते तूफ़ान तेरे चेहरे से बयान होते हैं...

ऐ मोहब्बत में रातो को उठ उठ कर रोने वाले सुनजा ...
आंसू तेरे आँखों से नहीं गीले हिजाब से बयान होते हैं...

वादे तुने जो भी किए मुझसे सब के सब झूठे निकले...
न आने के चर्चे तेरे घर से नहीं मजार से बयान होते हैं...

खुशी की इन्तेआह जो तुझे उसकी बाहों में मिल रही है...
मुस्कुराहटों से नहीं निशाँ उसके खरोंचो से बयान होते हैं...

भुला चुकी मेरी यादो के निशाँ ऐ मेरी जिंदगी -ऐ-मोहब्बत ....
कहने से नहीं वो तो तेरी ढलती आँखों से बयान होते हैं...

भावार्थ...

जी चाहे तो !!!

जी चाहे तो शीशा बन जा...
जी चाहे तो पैमाना बन जा...
शीशा पैमाना क्या बनना....
मय बन जा मयखान बनजा...
मय बनके मयखाना बनके...
मस्ती का अफसाना बन जा...
मस्ती का अफसाना बनके...
हस्ती से बैगाना बन जा...
हस्ती से बैगाना बनना...
मस्ती का अफसाना बनना...
इस बनने से इस होने से ...
अच्छा है दीवाना बन जा...
दीवना बन जाने से ही ...
दीवाना होना अच्छा है...
दीवाना हो जाने से भी...
खाके दरेजाना बन जा...
खाके दरे जाना क्या है...
अहले दिल की आँख का सुरमा...
शम्मा की दिल की ठंडक बन जा...
नूरे दिले परवाना बन जा...
सीख जहीन के दिल से जलना....
काहे को हर शम्मा पे जलना...
अपनी आग में ख़ुद जल जाए...
तू ऐसा परवाना बन जा...

रक्स-ऐ-बिस्मिल (एल्बम)

Saturday, December 27, 2008

कह दो वो दिल की बातें !!!

कह दो वोह दिल की बातें जो तुम्हारे दिल में आती हैं...
मुझे समझ में जो आती नहीं और जो तुम्हे सताती हैं...

बेकरारी रातो की कुछ खयालो का ही सिला होगा...
कह दो उन अफसानो को जो तुम्हें ये रात सुनाती हैं...

पल पल में टीज ने तेरे इस जेहेन को झकझोरा है ...
न ख़ुद सोती है याद मेरी और ना ही तुम्हे सुलाती है...

सालो के मलहम ने तेरे चाक जो सारे सिल पाये...
मुझसे जुड़ी ये कसक भी तुझको वहीँ वहीँ दुखाती है...

अक्ल की बात सदा ही तेरे लबों तक पहुँची है ...
अब वो कह दे जो हर पल तेरे दिल में उभर के आती है...

कह दो वो दिल की बातें जो तुम्हारे दिल में आती हैं....
मुझे समझ में जो आती नहीं और जो तुम्हे सताती हैं...

भावार्थ...

Friday, December 26, 2008

उसे मुझे से शिकायत है !!!

मेरे हमदम को मुझसे बस इतनी शिकायत है ...
जवानी की दहलीज़ पे भी बचपन क्यों मुझसे जुदा नहीं होता...

मेरा हमनशीं मुझसे बस इस बात पे खफा है...
मेरी जुबान पे जो भी आता है उसमें सलीका नहीं होता...

मेरा हमसफ़र बस इस बात पे मुझसे नाराज है...
में उसके साथ चलती हूँ पर मेरा साया साथ नहीं होता...

मेरा हमराही बस इतनी सी बात पे रूठा है...
मुझे साल के कुछ ख़ास दिनों का क्यों ख्याल नहीं रहता...

पर किस तरह उसको बताऊँ ?
किस तरह अपनी जिंदगी को समझाऊं ?

ज़माने के दिए सारे गम उसके भुलाने को ...
मेरे भीतर का बचपन मुझसे अब भी जुदा नहीं होता...

मुझे दिल की बात कहने में सुकून मिलता है...
तो जुबान से निकली बात में मेरे कोई सलीका नहीं होता...

मेरा साया उसपे पड़ने वाली बालाओं को लेता है...
तो जब में चलती हूँ तो वहां मेरा साया साथ नहीं होता...

जिसे पल पल की फ़िक्र रखनी हो अपने हमदम की...
उसे साल क्या दिन क्या किसी भी बात का ख्याल नहीं रहता...

पर काश !!! वो इसे समझे...
मेरे खाब-ओ-ख्याल को समझे...
मेरे अनकहे जज्बात को समझे...

जैसी भी हूँ में उसके लिए हूँ ...
उसकी दुनिया उसकी जिंदगी हूँ ...
उससे जुदा हो कर में कहाँ कुछ हूँ...

पर काश !!! वो इसे समझे...

भावार्थ...

तुम बिन

तुम बिन जीवन कैसा है
माँ बिन बचपन जैसा है।

माँ बिन बचपन कैसा है
तुलसी बिन आँगन जैसा है।

तुलसी बिन आँगन कैसा है
सूरत बिन दर्पण जैसा है।

सूरत बिन दर्पण कैसा है
बादल बिन सावन जैसा है।

बादल बिन सावन कैसा है
माँ बिन बचपन जैसा है

माँ बिन बचपन कैसा है
तुम बिन जीवन जैसा है।

एक हादसा !!!

चकाचौंध,हल्ला और पागलपन...
मेरी क्रिसमस कहते लोग...
शोर के साथ नाचते लोग...
गले मिलते हाथ मिलाते लोग...
नशे में गम को भूलते लोग...
छुट्टी का मजा उठाते लोग...
रंगीनियाँ रात के साथ बढ़ रही थी...
पुराने पब में हजारो नाचते...
जोश की हर सीमा को लांघते...
पर चकाचौंध से कुछ कदम दूर...
पब के पीछे जहाँ आलीशान कारे थी...
वहां सिर्फ़ कोयले सा अँधेरा था...
असल में वहां कुछ तिरपाल से बने घर थे...
जहाँ कुछ मजदूर रहते थे...
कुछ अमीर जादे आए सफारी में सवार...
हाथो में महंगी शराब ...
बाहों में हुस्न बेहिसाब....
शोर बहुत था और उनका जोश भी...
नशा चढा...और बेहोशी भी...
तेज सफारी से शराब की बोटेल फैंकी...
कांच सीधा सोते बच्चे पे गिरा...
सोता हुआ बचपन हमेशा के लिए सो गया...
उनका क्रिसमस का मजा पूरा हो गया...
बच्चे की बिलखती माँ ,तड़पता बाप...
किसको रोये किसको चिल्लाये ...
कुछ दूर तक भागा हाफता हुआ ...
सफारी के पीछे नहीं...हस्पताल की तरफ़...
पर मौत कहाँ इंतज़ार करती है....
अँधेरा था उसके इर्दगिर्द...
पड़ी ईंट को शायद देख नहीं पाया...
बच्चे को ले कर गिरा, फ़िर उठा...
पर जिधर रौशनी थी उधर जश्न था...
और जिधर अँधेरा था उधर उसकी उम्मीद...
भागता भागता बोहिल हो गया...
मुझे नहीं पता क्या हुआ उसके बाद...
पर खौफनाक था जो भी हुआ...
मैंने किसी से मेरी क्रिसमस नहीं कहा...

भावार्थ...

Thursday, December 25, 2008

मुझे जिससे मोहब्बत है !!!

मुझे जिससे मोहब्बत है उसको मैं अपना नहीं सकता ...
क़ैद में हूँ इन समाज की सलाखों में कुछ जता नहीं सकता...

जिंदगी भर उसके एहसास को खुदा दिल में जिन्दा रखे...
में जल रहा हूँ जिस आग में ख़ुद उसको बुझा नहीं सकता...

वहां मेरी मोहब्बत उसके जेहेन में बड़े तूफ़ान लाती है...
यहाँ इश्क के समंदर में अरमान मेरा साहिल पा नहीं सकता...

वोह मेरी हीर आँखों में रात भर नींद बन कर रहती है...
दिन भर खुली आँखों में उसके खाबो को युही बसा नहीं सकता...

कहानी में ही सही उसके लबो पे मेरा नाम तो आता है...
झूठे मूटे को ही सही में उसका नाम किसीको बता नहीं सकता...

इन साँसों में उसकी साँसों की गर्मी मैंने हर पल महसूस की है...
उसकी प्यास को अपनी रूह से मैं युही अब हटा नहीं सकता...

मुझे जिससे मोहब्बत है उसको मैं अपना नहीं सकता...
कैद मैं हूँ इन समाज की सलाखों में कुछ जता नहीं सकता...

भावार्थ...

वो धुंध भरी रात भी अजीब थी !!!

वो धुंध भरी रात भी अजीब थी !!!
दो अजनबी कुछ फासले पे...
जाने पहचानो की तरह बैठे रहे...
अल्फाज़ दूरियां भर नहीं पा रहे थे...
बातें धुंध में जैस गुम हो रही थी...
निगाहें उसके चेहरे को ताकती ...
अपनापन तलाशती और धीरे से...
अजनबी बन जाती पहले की तरह...
रात उड़ती रही हमारे इर्द गिर्द...
और धुंध उसके साए में समां गई...
कुछ मशाल दिए बन के रह गए ...
और दुनिया के नज़ारे धुंध में खो गए...
आँखों की रौशनी थकने लगी...
सड़क कोहरे से मिटने सी लगी...
उसने कुछ कहा ...फ़िर मैंने भी...
उसने कुछ सुना....और मैंने भी...
समय रुक गया था, हमारी कार...
धुंध में बस रेंग सी रही थी...
मैंने उसकी हथेली अपनी हथेली में...
रख उसकी किस्मत पढ़नी चाही ...
उसकी लकीरों में अपनी सूरत पढ़नी चाही...
नर्म एहसास उसने मुझमें भर दिया...
दर्द मीठे एहसास में तब्दील कर दिया...
उसके गेसू जब धुंध की हवा उडा कर लायी...
मुझे खुशबू उसकी जैसे छु गई...
हर बात उसकी कही शहद बन के बह निकली...
मेरी सोच उसके खयालात में खो गई...
कब अजनबी अपने बन गए पता न चला...
फासला पल का घंटो तक पता न चला...
मेरे गहरे चाक कुछ एक पल को भर गए...
लम्हों की बूंदे यादो का समंदर बना गई...
उसकी हर बात जेहेन में धुंध सी छा गई...
मेरे जज्बात अब मेरे न रहे...
दो अजनबी अब अजनबी न रहे...
वो धुंध भरी रात भी अजीब थी !!!

भावार्थ...

Wednesday, December 24, 2008

तुम मेरे हो

जिस दिन से तुमको देखा है सनम...
बैचैन रहते हैं उस दिन से हम...
लगता है ऐसा खुदा की कसम...
तुम मेरे हो ...तुम मेरे हो...
सावन है बरसात होती नहीं...
खुल के कोई बात होती नहीं...
कैसे बताएं ये तुमको सनम...
तुम मेरे हो ...तुम मेरे हो...

शायर जो होता तो तेरे लिए...
कहता ग़ज़ल मैं कोई प्यार की ...
होता मुस्सविर तो अपने लिए ...
मूरत बनता रूखे यार की....
तस्वीर तेरी बनता मैं...
सारे जहाँ को दिखता मैं...
लेकिन में मुसाविर नहीं
है ये बात की शायर नहीं...
कैसे बताएं ये अबको सनम...
की तुम मेरे हो...तुम मेरे हो...

रातों को करवटें बदलते हैं हम...
शम्मा की मानिंद जलते हैं हम...
तुम ही बताओ की हम क्या करें...
चारो तरफ़ देखते हैं तुम्हे ...
इसमें खता क्या हमारी है...
हर शय मैं सूरत तुम्हारी है...
कलियों मैं तुम बहारो मैं तू...
इस दिल मैं तुम हो नज़रों मैं तुम...
कैसे बताएं ये तुमको सनम...
की तुम मेरे हो....तुम मेरे हो...

पाकिस्तानी शायर...








मुस्सविर जो होता तो मूर बनता ...

कुछ नही लिखती हूँ

उसने पुछा था
क्या बताऊँ
क्यूँ नही लिखती गजलें ,
नज्में, गीत ,मुक्तक या रुबाई
कुछ भी बात नही
शायद ज़ज्बात
ठंडे पड़ गए हैं
दर्द बढ़ के
दवा हो गया है
या शायद मेरी तकदीर का
कुछ और फैंसला हो गया है
और
कभी तो बस कुछ सूझता ही नही है
यही कहा था
पर सोचती हूँ क्या यही सच था
क्या में महसूस करना भूल गई हूँ
या फिर लिखना ही शायद
नही मैं कुछ भूली नही हूँ
कुछ भी नही
पर डर है नई यादों से
नई बातों से
डर है गर लिखा तो
वोह डर बयां हो जाएगा
डर है की
जुबान जो कह नही पाती
वो कागज़ पे उतर आया तो
मेरा दिल
कुछ लफ्जों में
नज़र आया तो


झूठ लिखना
मेरी आदत नही है
और सच लिखने की हिम्मत नही है
कागज़ पे लफ्ज़ नही
रूह रखती हूँ
इसीलिए आजकल
कुछ नही लिखती हूँ
...




Tuesday, December 23, 2008

मेरी छुई मुई...!!!

मेरी छुई मुई...

नाज़ुक है ऐसी मेरी छुई मुई...
धुंध कि रेशमी कोई चादर हो...सावन को ओढे कारे बादर हो...
हवा में उड़ता हो कोई पंख...
सागर में तैरता हो कोई संख...
फूंक से जैसे खुशबू हो उडी...
दिए से जैसे कि लौ हो जुड़ी...
कच्ची मिटटी का खिलौना जैसे...
बचपन का खाब सलोना जैसे...
धुप जो पत्तो से झड़ के गिरे...
बूंदे जो डालियों से बह के गिरे...
नाज़ुक है ऐसी मेरी छुई मुई...

मेरी छुई मुई...

भावार्थ...

Monday, December 22, 2008

मद्धम खुशबू !!!

मद्धम खुशबू धीमे से गुलज़ार से निकली...
ओस में नहाई सुबह से सजी...
रंगों को ओढे बहारो सी खिली...
छू गई उस धुंध को जो अभी गीली थी...
नदी की छत से बही जो अभी नीली थी...
बूंदे निगाह भर देखने को गिरने लगी...
भंवरो की तमन्ना भी फ़िर मचलने लगी...
रेशम सी हलकी खुशबू बह निकली...
मद्धम खुशबू धीमे से गुलज़ार से निकली...

भावार्थ...

मुहब्बत तर्क की मैंने !!!

मुहब्बत तर्क की मैंने गरेबान सी लिया मैंने...
ज़माने अब तो खुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैंने...

अभी जिंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ खल्वत में...
की अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने...

उन्हें अपना नहीं सकता मगर इतना भी क्या कम है...
कोई कुछ मुद्दत हसीं खाबो में खो कर जी लिया मैंने...

बस अब तो दामन-ऐ-दिल छोड दो बेकार उम्मीदों
बहुत सीख सह लिया मैं ने बहुत दिन जी लिया मैंने...

साहिर लुधियानवी...

Sunday, December 21, 2008

मैं अब वो नहीं रहा !!!

मेरा माजी अपनी जवानी की दहलीज़ पे...
मुझसे नाराज़ है की मैं अब वो नहीं रहा...
सफ़ेद संग सा मेरा अब जमीर वो नहीं रहा...
तामीर-ऐ-जेहेन मेरा अब चट्टान सा नहीं रहा...
नूर-ऐ-रूह मैं मेरे वो अब उजाला नहीं रहा...

मेरा माजी अपनी जवानी की दहलीज़ पे ...
मुझसे नाराज़ है की मैं अब वफ़ा नहीं रखता...
चेहरा बदल रहा हूँ एक शक्ल नहीं रखता...
गुरूर झलकता है अब वो अदब नहीं रखता...
मगरूर-ऐ-हासिल हूँ अब वो अक्स नहीं रखता...

मेरा माजी अपनी जवानी की दहलीज पे...
मुझसे नाराज है की मुझमें अब वो बात नहीं है ...
बस बेहूदगी पहेनली है अब वो संजीदगी नहीं है...
झूठे तिलिस्म बना लिए हैं अब वो सादगी नहीं है...
कितने टुकडो मैं जी रहा हूँ अब वो जिंदगी नहीं है...



भावर्थ...

Saturday, December 20, 2008

अगर इक आशिक न होते !!!

अगर इक आशिक न होते तो हम भी बा-कमाल होते...
मिटते न यु मोहब्बत में तो हम भी बेमिसाल होते...

हमारी शख्शियत जो कूंचों पे नीलम हुई तेरे लिए ...
न मिलती नज़रे तुझसे तो हम भी नूर-ऐ-जलाल होते...

वखत उस मगरूर ने हमारी जानी ही नहीं वरना ...
लाखो के जवाब सही हम पर करोडो के सवाल होते...

हमारे चिराग की रौशनी इतनी भी कम न थी बेवफा...
न होते जो परवाने तेरे तो हम भी जलती मशाल होते...

एक तू ही तो खूबसूरत नहीं दुनिया में नाजनीन बता ...
तेरी तमन्ना न होती तो हम भी किसी का मलाल होते...

बुझ गए किसी दिए की तरह हम भी फूँक से आज फ़िर...
तेरी आस नहीं होती तो हम भी मुनव्वर-ऐ-हिलाल होते...

भावार्थ

Friday, December 19, 2008

तुम पूछो और में न बताऊँ

तुम पूछो और में न बताऊँ ऐसे तो हालत नहीं हैं...
एक जरा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं है...

किसको ख़बर थी सांवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं....
सावन आयन लेकिन अपनी किस्मत में बरसात नहीं...

टूट गया जब तो फ़िर साँसों का नगमा क्या माने...
गूँज रही हैं क्यों शहनाई जब कोई बारात नहीं हैं...

मेरे ग़मगीन होने पे अहबाब हैं यु हैरान कतील ....
जैसे में पत्थेर हूँ मेरे सीने में जज्बात नहीं...

कातिल शिफई...

लज्ज़त-ऐ-गम बढ़ा दीजिये...

लज्ज़त-ऐ-गम बढ़ा दीजिये...
आप यू मुस्कुरा दीजिये...
कीमत-ऐ-दिल बता दीजिये...
ख़ाक ले कर उड़ा दीजिये...
आप अंधेरे में कब तक रहे...
फ़िर कोई घर जला दीजिये...
चाँद कब तक गहन में रहे...
आप जुल्फें हटा दीजिये...
मेरा दामन बहुत साफ़ है...
कोई तोहमत लगा दीजिये...
एक समन्दर ने आवाज दी...
मुझको पानी पिला दीजिये...
लज्ज़त-ऐ-गम बढ़ा दीजिये...
आप यू मुस्कुरा दीजिये...

मुन्नी बेगम...








Thursday, December 18, 2008

मैं जिस दिन भुला दूँ तेरा प्यार दिल से...!!!

मैं जिस दिन भुला दूँ तेरा प्यार दिल से ...
वो दिन आखरी हो मेरी ज़िन्दगी का...
ये आँखें उसी रात हो जाए अंधी...
जो देखे तेरे सिवा सपना किसी का...

मुझे अपने दिलसे उतरने न देना...
में खुसबू हूँ मुझे बिखरने न देगा...
रहे तू हमेशा इन बाजूओं में...
न टूटे ये बंधन कभी दोस्ती का...

मेरी धडकनों में मोहब्बत है तेरी...
मेरी ज़िन्दगी अब अमानत है तेरी...
तमन्ना है इन रास्तो पे चले तुम...
निशाँ हो वहां मेरी बन्दिगी का...

मैं जिस दिन भुला दूँ तेरा प्यार दिल से...
वोह दिन आखरी हो मेरी जिंदगी का ...

खुशबू..(१९७९)

Wednesday, December 17, 2008

जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं !!!

जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं ...
में तो मर के मेरी जान तुझे चाहूंगा...

तू मिला है तो ये एहसास हुआ ही मुझको...
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोडी है...
एक जरा सा गम-ऐ-दौरा है जिसपे हक है ...
मैंने वोह साँस भी तेरी लिए रख छोडी है...

तुझपे
हो जाऊँगा कुर्बान तुझे चाहूंगा...
में तो मर के भी मेरी जान तुझे चाहूंगा...

अपने जज्बात में नगमात रचाने के लिए...
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे...
में तस्सवुर भी जुदाई का कैसे करू..
मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे...

प्यार का निगहबान बनके तुझे चाहूंगा...
में तो मर के भी मेरी जान तुझे चाहूँगा ...

साहिर लुधियानवी...






उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...!!!

उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ ...
अल्फाजो में जो न समाया जा सके ...
गीतों में जो न गुनगुनाया जा सके...
दिल से जो न जुबांपे लाया जा सके...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...

उस
खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...
जिसकी अधूरी सी प्यास नजरो में रहे...
जिसकी दिलकश मिठास अधरों में रहे...
जिसकी हर अदा ख़ास इन सजरो में रहे...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...

उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...
जो इन नसों में लहू बन के उतर जाए...
जो हर ख्याल-ओ-खाब में सवर जाए...
जो मेरे हर जर्रे में खुशबू सा ठहर जाए...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...

उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...
जिसको कोई नाम भी देने से डरती हूँ...
जिसके मदहोश आगोश में सवरती हूँ....
जिसके लिए जीती हूँ उसपे ही मरती हूँ...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ....

भावार्थ...

Tuesday, December 16, 2008

भूलने वाले से कोई कह दे जरा...

भूलने वाले से कोई कह दे जरा...
इस तरह याद आने से क्या फायदा ...

चार तिनके जला के क्या मिल गया...
मिट न सके जहाँ से मेरे निशाँ...
मुझपे बिजलियाँ गिराओ तो सही...
आशियाने पे गिराने से क्या फायदा...

पहले दिल को बुरे से कर पाक तुम...
फ़िर कुलु सी यकिदत से कर जुस्तजू...
ऐसे सजदे से अल्लाह मिलता नहीं...
हर जगह सर झुकने से क्या फायदा...

तुमन मूसा को नाहक तकलीफ दी...
लुफ्त आता अगर याद करती हुई...
जिनकी आँखों ने ताबे नजारा न हो...
उनको जलवा दिखने से क्या फायदा...

मुन्नी बेगम...

Monday, December 15, 2008

ये रिश्ते निभाने वाले !!!


क्यों मुस्कुराना नहीं चाहते ये रिश्ते निभाने वाले...
क्यों ठहरना नहीं चाहते ये दूर तक जाने वाले...

जकड़ते वादों और झूठी वफाओं में है उनकी जिंदगी...
क्यों संभालना नहीं चाहते ये गम से बिखरने वाले...

तीरगी जीते हैं पर लम्हे भर की रौशनी से डरते हैं...
क्यों एक दिया नहीं जलाते अमावस में रहने वाले...

तन्हाई ओढे शब् में अश्क मय प्यालो से बहते हैं ...
क्यों दोस्ती नहीं आजमाते ये 'दोस्त' कहने वाले...

खौफ ज़माने का नहीं ख़ुद का बनाया तिलिस्म है...
क्यों मुझसे मिल नहीं जाते मुझे अपना कहने वाले...

उनकी जिद है राज रखना दिल में इक बेवफाई होगी ...
क्यों तमन्ना जी नही जाते अपने जी को मसलने वाले...

भावार्थ...

तू मेरी ज़िन्दगी है

तू मेरी ज़िन्दगी है तू मेरी हर खुशी है...
तू ही प्यार तू ही चाहत तू ही बन्दिगी है...

जब तक न देखूं तुझे सूरज न निकले...
जुल्फों के साए साये महताब उभरे ...
तू ही दिल का होश साथी तू ही बेखुदी है...

मेरे लबो पे तेरे नगमे मिलेंगे...
आँहों में मेरी तेरे जलवे मिलेंगे...
मेरे दिल में तू ही तू है तेरी रौशनी है...

छोड़
के दुनिया तुझको अपना बना लूँ...
सब से छुपा के तुझको दल में बसा लूँ...
तू ही मरी पहली ख्वाइश तू ही आखरी है...

तू मेरी जिंदगी है तू मेरी हर खुशी है...
तू ही प्यार तू ही चाहत तू ही बन्दिगी है..

क़तील शिफई...

Sunday, December 14, 2008

हाँ में वही हूँ !!

क्यों मुझे तुम अनजान नज़रो से देखती हो ...
में वही हूँ जिसे कभी तुमने अपना साया कहा था...
अपने आगोश की की मचलती सी तमन्ना...
अपने दिल की आवाज़,अपना शरमाया कहा था...

हाँ में वही हूँ !! हाँ मैं वही हूँ !! हाँ में वही हूँ !!

उन दिनों जब तन्हाई की रानाई मुझे भाने लगी...
जिंदगी शायरी नज़मो में उभर के आने लगी...
हो गया एक रूह का मेरी रूह पे ग्रहण शायद ...
मेरी हर शय कागज़ पे हर्फ बन के छाने लगी...

कुछ रोज तलक हकीकत उभरने की कोशिश में...
मुझे और मेरे सोये जमीर को हिलाने लगी...
दुनिया के बेरुख लोगो के सजे तिलिस्म में ...
समाज की झूठी शाहान्शाई से डराने लगी...

ख़ुद को मैंने पहले ख़ुद से आजाद कर ...
अपनी तमन्नाओ को मुफ्त में नीलम किया...
हर भूख और हर प्यास के जोर को ...
अपने वजूद को उनकी जंजीर से बाहर किया...

हर अल्फाज़ तब मेरा आईना बन बन के गिरा...
मेरी हर एक बात लोगो के दिल पे लगने लगी...
मेरे अफकारो में सच की सूरत कुछ ऐसी बनी...
झूठ की हस्ती लोगो को जेहेनो में खलने लगी ...

मेरा आजाद जज्बा दुनिया के खाके से जुदा था
राज शाही बंदर नए नए जाल बुनने लगे...
मेरी आवाज़ को कहीं दफ़न करने की साजिश...
मुझे मेरे सच के आईने से जुदा करने लगे...

लोग मेरी तरफ़ बुरी नज़रें उठाने लगे थे...
मेरी सोच को कठघरे में लाया जाने लगा...
कुछ और जमीर फ़िर से बाज़ार में बिक गए...
मेरी नज़मो को नए अंदाज़ से पढ़ा जाने लगा...

कुछ
ज्यादा से पढ़े लोगो ने मुझे गुनेहगार कहा...
मुझपे पिंजरे से पाखी के परवाज़ का जुर्म था...
झूठ सच की शक्ल में तैरने लगा बंद कमरे में...
मुझपे सोये हुए लोगो को जगा देने का जुर्म था...

झूठ जीता झूठे लोगो की नज़रों में उस रोज भी...
सच को कुछ और दिन सकूत के नसीब हो गए...
कठघरे से निकल कर सच ने जंजीर पहनी...
जमीर के सौदे फ़िर एक बार बाज़ार में हो गए......


मेरी तमन्नाओं में कुछ एक सिलवटें बन गई...
मेरे ख्वाब सिकुड़ के कहीं कौन में जा बैठे...
अरमान उजडे हुए गुलजार की तरफ़ बढ़ गए ...
मेरे सपने मुझसे मुँह फेर कहीं दूर जा बैठे...

नहीं चाहिए मुझे चलते फिरते मुर्दा लोग...
नहीं चाहिए उनकी बिगड़ी सी तसवीरें बनी...
नहीं चाहिए बाज़ार का उठता हुआ शोर...
नहीं चाहिए मिटी हस्ती के वोग लोग धनी...

दुल्हन सी सजी दुनिया से बेहतर तो तेरे साए का वीराना...
झूठी सी दिलचस्प कहानी से बेहतर तो तेरा अफसाना...
शोखियों और रानायियो से कहीं बेहतर तेरी सादगी...
हासिल को दौड़ती जिंदगी से अच्छा दो पल का थमजाना...

फ़िर क्यों मुझे तुम अनजान नज़रो से देखती हो ...
में वही हूँ जिसे कभी तुमने अपना साया कहा था...
अपने आगोश की की मचलती सी तमन्ना...
अपने दिल की आवाज़,अपना शरमाया कहा था...

हाँ में वही हूँ !! हाँ मैं वही हूँ !! हाँ में वही हूँ !!

भावार्थ...

Saturday, December 13, 2008

की आज तुम शायद आओगी...!!!

यही सोच में फ़िर चर्च गया...
की आज तुम शायद आओगी...
बिल्कुल पहली मुलाकात के तरह...
मुझे लगा वो वाकया होगा कि...
तुम उस रोज भी देर से आओगी...
घुसते ही आस्तां पे लड़खडाओगी ...
कुछ पल को तुम्हें होश न रहेगा...
फ़िर तुम मेरे आगोश में गिर जाओगी...
पर आज कल दोहराया नहीं...
मेरे बेइन्तेआह इंतज़ार का क्या ...
मिला मुझे कोई सरमाया नहीं...

यही
सोच में उस रास्ते पे गया...
कि शायद आज तुम आओगी...
समय अपनी धुन में गुम था ...
और मैं तेरी याद मैं बेसुध था...
तेरी एहसास को ज़र्रे में संजोये...
रास्ता आज भी मुझे रुलाता है...
में तेरी यादो के साथ चल निकला...
कि जेहेन के रास्ते ही सही ...
शायद तू आए और फ़िर मुस्कुराए...
पर रास्ते न तुझसे पहले मजिल पायी...
कुछ एक आंसू गिरे पर तू नहीं आई...

यही
सोच एक कब्र पे जा बैठा...
कि शायद आज तुम आओगी...
लोग कहते हैं कि तुम यहीं हो...
न जाने कितनी सालों से यहीं हो ...

ख़ुद के इंतज़ार को इब्तिदा दी मैंने...
जिंदगी को तेरी इन्तेआह दी मैंने...
तनहा अँधेरा शाम को ढलने लगा...
मेरा हर खाब जैसे बिखरने लगा...
फ़िर तुम हवा सी बन उभरी...
आगोश में लेने को जी चाह...
पर तुम आज फ़िर नहीं आई...

यही सोच में तेरी तस्वीर ले बैठा हूं...
शायद खुदा का कोई मोजजा हो...
और तुम इस कैद से बहर आओ...
और मेरी बाहों में गुम हो जाओ...

भावार्थ...

Thursday, December 11, 2008

यह कहानी फ़िर सही !!!

हमको किसके गम ने मारा ये कहानी फ़िर सही...
किसने तोडा दिल हमारा यह कहानी फ़िर सही...

दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने...
नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फ़िर सही...

नफरतों के तीर खा कर दोस्तों के शहर में...
हमने किस किस को पुकारा ये कहानी फ़िर सही...

क्या बताएं प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में...
कौन जीता कौन हारा यह कहानी फ़िर सही ...

गुलाम अली ग़ज़ल...

कुछ भी याद नहीं कर पा रहा हूँ...

ये अजनबी लोग मुझे अपना कहते हैं...
पर तेरी याद में मेरी हस्ती सिमट जाती है...
में चाहता हूँ की इनको कुछ समझ सकूं...
हर बार उनकी याद जेहेन से मिट जाती है...

जागते
ही जीने का एहसास होता है मुझे...
कहाँ नींद सुला गई मुझे याद नहीं कुछ भी...
तेरी हर एक अदा तैरती है आँखों में यु तो...
कोई सूरत कोई एहसास याद नहीं कुछ भी....

तुझे कितनी ही बार निकला है जेहेन से...
देखो ये भी मैं अब याद नहीं कर पा रहा हूँ...
हर बार तू और खालीपन बचते हैं मुझमें...
इसके सिवा कुछ भी याद नहीं कर पा रहा हूँ...

निशाँ ढूढता हूँ कुछ एक कदम चलने को ...
हर बार तेरी यादें झट से उभर आती है...
फ़िर वही तेरी यादों मैं लिपटे कुछ लम्हे ...
हर चीज़ मेरी तेरी उन यादों पे रुक जाती है...

किसको सोचूँ जब किसी की पहचान नहीं रही...
किसको बोलूँ जेहेन मैं जब कोई बात नहीं....
किसको देखू जब नजरो मैं सिर्फ़ वहम रहता है...
किसको जियूं जब कोई याद ही मेरे साथ नहीं...

तू है बस तू है अफसाना भी तू हकीकत भी तू...
कुछ और नहीं एहसासों में भी, यादो में भी...
तन्हाई भी तेरी यादो की वजह से नहीं आती...
दुआओं में भी नहीं कोई, मेरी फरियादों में भी...

भावार्थ...

Wednesday, December 10, 2008

चाहत नही मुझको

मंजिल के करीब मजिल की चाहत नही मुझको...
सेहरा पे तपकर बारिश से भी राहत नहीं मुझको...

तड़पती रही रूह जिस हुस्न-ऐ-यजदान के लिए...
खुदा के नूर से भी अंधियारे में उजाला नहीं मुझको...

हुस्न-ऐ-रानाई की तमन्ना लिए मैं जिया जिसकी...
उसके आगोश में आकर भी पर सुकून नहीं मुझको...

तख्त-ओ-ताज का खवाब लहू बहाकर हासिल हुआ...
रहनुमा-ऐ-मुल्क बनके भी अब जूनून नहीं मुझको...

जिंदगी देगी मुझे मेरे जीने का सिला शायद कोई...
ये उम्र जी भी ली मगर जीने से कुछ हासिल नहीं मुझको...

भावार्थ...

Tuesday, December 9, 2008

डर के जीना मौत से कहीं बदतर है...!!!

बस लड़ लड़ के रुक भी जाए जिंदगी तो अच्छा है...
डर डर के जीना भी यहाँ एक पल की मौत से कहीं बदतर है...

लम्हे दो लम्हे की तीरगी मिले तो अच्छा है...
कसक-ऐ-जेहेन भी सीने में धसी गोलियों से कहीं बदतर है...

खौफ के ये सजीले उफक छट जाएँ तो अच्छा है...
रानाई-ऐ-सुकूत भी यहाँ बेसुध धमाको से कहीं बदतर है...

लौट आऊं मैं जो खामोश साहिल पे तो अच्छा है...
थमा सा दरिया भी यहाँ उफनते समंदर से कहीं बदतर है...

अजनबी मुल्क में वफ़ा न करो तो अच्छा है...
जजा-ऐ-दोस्ती भी यहाँ सजा-ऐ-दुश्मनी से कहीं बदतर है...

जिंदगी तुझसे जो कुछ भी नहीं माँगा तो अच्छा है...
तामीर-ऐ-खाब भी तेरे साए में हकीकत से कहीं बदतर है...

बेलगाम मुल्क अब 'आवारा' बन जाए तो अच्छा है...
तौकीर-ऐ-रहनुमा भी यहाँ तजलील-ऐ-आम से कहीं बदतर है...

भावार्थ...

एक और सुबह !!!

सौ साल से जिंदगी की पगडण्डी पे चलते हुए...
उस बूढे ने आज सुबह को झमायी लेते हुए देखा...
की जब सूरज ने आँखें खोली तो सड़के तनहा थी...
बेसुध रात मद्धम उजाले मैं उबासी ले रही थी...
हवा अंधेरे मैं से छन-छन के हलकी हो गई थी...
तभी किसी बच्चे ने दरीचे से आवाज दी...
बाबा तुम फ़िर आ गए कूड़ा उठाने...

एक धमाका और खौफ हावी हो गया...
चीखो का जैसे पुलिंदा खुल गया था...
लहू और बे-इन्तहा कराहें बह निकली...
खामोशी न जाने कहाँ गुम हो गई थी...
दरीचे तक खौफ के साए पहुंचे...
बच्चे ने उस बूढे की परछाई को बिखरते देखा...

एक और जिंदगी को धमाका लील गया ...
कूडे का बोरा उसकी परछाई के उपर पड़ा था...
और जर्द कागज़ उसके उपर मंडरा रहे था...
सुबह उठ गई ,उसकी नींद गायब थी...
रात जाग कर उल्टे पैर लौट गई...
हवा बारूद से भरी भरी हो गई फ़िर से...
सौ साल से जिंदगी की पगडण्डी पे चलते चलते...
वो गुमनाम शायर भी आख़िर सो गया...

भावार्थ...

Monday, December 8, 2008

मेरे बच्चो में खौफ साँस लेता है !!!

आज बच्चो में खौफ साँस लेता है...
तीरगी उनके जेहेन में बसती है ...
दर्द के गुबार बन के युही उड़ते हैं...
बैचैनी हवा में घुल कर बहती है...

हिन्दुस्ता की सरजमी में जन्मे है जो...
स्कूलों के रास्तो पे भी सहमे हैं जो...
खेलते कूदते नहीं घरो में जमे हैं जो...
दिल की बात बोलने से भी डरे-थमे हैं जो...

मौत की सूरत नजरो में छुपा चुके हैं ये...
जिंदगी जीने के खाके बना चुके हैं ये...
लहू के रंग को सोच में सजा चुके हैं ये...
टूटी शख्शियत को अब अपना चुके हैं...

आएगा कल भी इनकी जवानी के साथ...
कहर बरप जायेगा नापाक मंसूबो के साथ...
छायेगा मातम भी कहीं धमाको के साथ...
उजड़ जायेगा मौसम भी चीखो के साथ...

मस्जिद और मन्दिर की तकरार देख चुके हैं...
ट्रेनों में लकड़ी सी जलती हुई लाश देख चुके हैं ...
मांस के चीथडो से सना हुआ बाज़ार देख चुके हैं...
सोने के चिडिया का ऐसा भी बदहाल देख चुके हैं...

भावार्थ...

Sunday, December 7, 2008

मेरी दास्ताँ-ऐ-हसरत !!!

मेरी दास्ताँ-ऐ-हसरत वो सुना सुना के रोये...
मुझे आजमाने वाले मुझे आजमां के रोये...

तेरी तज अदायिओं पे तेरी बेवाफयियो पे...
कभी सर झुका के रोये कभी मुँह छुपा के रोये...

जो सुनाई अंजुमन ने शब्-ऐ-गम की आप बीती...
क्यों रो रो कर मुस्कुराये कई मुस्कुरा के रोये...

कोई ऐसा अहल-ऐ-दिल हो जो फ़साने मोहब्बत...
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोये...

में हूँ बे-वतन मुसाफिर मेरा नाम है बेकसी ...
मेरा कौन है जहाँ में जो गले लगा के रोये...

मेरे पास से गुज़र कर मेरी बात तक न पूछी...
मैं ये कसी मान जाऊं की वो दूर जा कर रोये...

कभी मुझसे रूठ कर वो जो मिले थे रास्ते मैं...
मैं उन्हें मना कर रोया वो मुझे मना कर रोये...

पाकिस्तानी शायर...
(sung by Aziz Mian)
http://in.youtube.com/watch?v=HvBHhErzW3U&feature=related

ऐ मेरे हमनशी !!!

ऐ मेरे हमनशी चल कहीं और चल...
इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं...
बात होती गुलो की तो सह लेते हम...
अब काँटों पे भी हक हमारा नहीं...

दी सदा दौर पे और कभी तुद पे...
किस जगह तुमको मैंने पुकारा नहीं...
ठोकरे खिलाने से क्या फायदा...
साफ़ कह दो की मिलना गवारा नहीं...

गुल्सिता को लहू की जरूरत पड़ी...
सबसे पहले ये गर्दन हमारी कटी...
फ़िर भी कहते हैं मुझसे ये अहल-ऐ-चमन...
ये चमन है हमारा तुम्हार नहीं...

जालिमो अपनी किस्मत प नाजा न हो...
दौर बदलेगा ये वक्त की बात है...
वो यकीनन सुनेगा सदायें मेरी...
क्या तुम्हारा खुदा है हमारा नहीं...

आज आए हो तुम कल चले जाओगे...
ये मोहब्बत को अपनी गवारा नहीं...
उम्र भर का सहारा बनो तो बनो...
दो घड़ी का सहारा सहारा नहीं...

अपनी जुल्फों को रुख से हटा लीजिये...
मेरा जोख-ऐ-नज़र आजमा लीजिये...
आज घर से चला हूँ यही सोच कर...
या तो नज़रे नहीं या फ़िर नज़ारा नहीं...

तस्सवुर खानुम...

Saturday, December 6, 2008

जिंदगी मेरी घर बनाने में निकल गई !!!

जिंदगी मेरी घर बनाने में निकल गई...
क़र्ज़ की किश्तें चुकाने में निकल गई...

दो चार लम्हे भी ये लब मुस्कुरा न सके ...
बोझ तले हसीं भी आंखों से निकल गई...

दिन पसीने में शाम भीड़ में गुम हो गई ...
तामीर के खाब में सारी रात निकल गई...

देह ने पुराने कपड़ो की शिकायत जो की...
आह मेरी गुल्लक के गले से निकल गई...

हवेलियों में बचपन जो गुज़रा हमारा ...
जवानी दो कमरे बनाने में निकल गई...

ज़िन्दगी के खाब जो गाँव में देखे मैंने...
जिंदगानी शहर की भीड़ में निकल गई...

अपनी छत की चाहत रही मुझे उम्र भर...
जब क़र्ज़ चुका तो मेरी जा निकल गई...

जिंदगी मेरी घर बनाने में निकल गई...
कर्ज की किश्तें चुकाने में निकल गई...

भावार्थ...

Friday, December 5, 2008

कांच के मगरूर ख्वाब मेरे !!!

कांच के मगरूर ख्वाब मेरे...
लरजते हैं मगर टूटते नहीं ...
जुदा जुदा से हैं अरमान मेरे...
रुलाते हैं मगर छूटते नहीं...

बनी राहो पे चलना नहीं...
पहचान बनाने का जूनून है...
किस्मत ख़ुद बनानी है...बेचैन रूह को कहाँ सुकून है...

रास्ते ये आसन नहीं...
कारवां बदलने लगे हैं...
होसले भी कम नहीं...
थक कर भी चलने लगे हैं...

डराने लगी है खामोशियाँ...
जब भी मैं साँस लेता हूँ...
रुलाने लगी हैं तल्खियाँ...
जब भी तेरा नाम लेता हूँ...

भावार्थ...

Thursday, December 4, 2008

बहुत अच्छा किया

देर से ही सही तुम आए ,बहुत अच्छा किया,
बाद लंबे वक्त के भाये , बहुत अच्छा किया।


हो गए थे गुम की अपनी ही सुरंगों-बीच हम,
खोजकर हमको यहाँ लाये ,बहुत अच्छा किया।


गरजने सुनता रहा कब से तुम्हारी दूर से,
आज जल बनकर यहाँ छाये बहुत अच्छा किया।


खो गया था यार तुम पर सारे शिकवों का असर
आज अरसे बाद शर्माए बहुत अच्छा किया।


नदी , नाले , पर्वतों ने रास्ते रोके बहूत ,
भूल तुम हमको नही पाये बहुत अच्छा किया।

Dr.Ramdarash Mishr.

Wednesday, December 3, 2008

कोई दर्पण नही है.

नही हम में कोई अनबन नही है

बस इतना है की अब वो मन नही है।


मैं अपने आपको सुलझा रहा हूँ,

उन्हें लेकर कोई उलझन नही है


मुझे वो गैर भी क्यूँ कह रहे हैं,

भला क्या ये भी अपनापन नही है।


किसी के मन को भी दिखला सके जो

कहीं ऐसा कोई दर्पण नही है।


मैं अपने दोस्तों के सदके लेकिन

मेंरा कातिल कोई दुश्मन नही है।


मंगल 'नसीम'

मोहब्बत कर बैठी वो !!!

मेरी शायरी-ए-रानाई से मोहब्बत कर बैठी वो...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

घुमते रहते हैं ख्याल मेरे जेहेन मैं धुएँ की तरह...
टूटते रहते हैं हर्फ़ मेरी कलम से खाबो की तरह...
रूठते रहते हैं मुझसे कागज़ छोटे बच्चो की तरह...
मेरी बेरुख आवारगी से मोहब्बत कर बैठी वो...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

कब कहाँ कौन सी बात पे रुक जाऊं नहीं पता...
कौन से ख़यालात पे कुछ लिख जाऊं नहीं पता...
कहाँ अल्फाजों मैं यु ही उलझ जाऊं नहीं पता...
मेरी डूबती शख्शियत से मोहब्बत कर बैठी वो ...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

मैं कुछ अधलिखे जर्द पन्नो के सिवा कुछ भी नहीं...
मैं इन बिखरे हुए एहसासों के सिवा कुछ भी नहीं...
मैं इन उड़ते हुए दीवाने पत्तो के सिवा कुछ भी नहीं...
मेरी अधूरी सी तस्वीर से मोहब्बत कर बैठी वो...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

मेरी शायरी-ए-रानाई से मोहब्बत कर बैठी वो...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

भावार्थ...

जो ग़म से हार जाओगे,..!!!

दुःख और सुख के रास्ते, बने हैं सब के वास्ते ...
जो ग़म से हार जाओगे, तो किस तरह निभाओगे...
खुशी मिले हमें के ग़म, जो होगा बाँट लेंगे...
हम्मुझे तुम आजमाओ तो ज़रा नज़र मिलाओ तो...

ये जिस्म दूर हैं मगर, दिलों में फासला नहीं...
जहाँ में ऐसा कौन है, कोई जिसको ग़म मिला नहीं...

तुम्हारे प्यार कि क़सम, तुम्हारा ग़म है मेरा ग़म...
न यूं बुझे बुझे रहो, जो दिल कि बात है कहो...
जो मुझे से भी छुपाओगे, तो फिर किसे बताओगे ...
मैं कोई गैर तो नहीं, दिलाऊं किस तरह यकीन...
कोई तुमसे मैं जुदा नहीं, मुझे से तुम जुदा नहीं...

साहिर लुधियानवी...

आज फ़िर वही अपनों की कमी...!!!

आज फ़िर वही अपनों की कमी...
आज फ़िर वही पलकों की नमी...

मेरा तनहा आगोश,मेरी तन्हा बाहें...
मेरा तनहा ख्वाब, मेरी तनहा राहें...
तन्हा है आसमान तन्हा है ये जमी...
आज फ़िर वही पलकों की नमी...

आज फ़िर वही अपनों की कमी...

आज फ़िर वही पलकों की नमी...

रिश्तो मैं पली जिंदगी अकेली है...
क्या चाहिए मुझे ये भी एक पहेली है...
में गुमशुदा हूँ ख़ुद में कहीं सहमी...
आज फ़िर वही पलकों की नमी...

आज फ़िर वही अपनों की कमी...
आज फ़िर वही पलकों की नमी...

याद आते ही ये अश्क बह जाते हैं...
उनके न होने के निशाँ रह जाते हैं...
मुझे सुलाने को रह गई ये रात थमी...
आज फ़िर वही पलकों की नमी...

आज फ़िर वही अपनों की कमी...
आज फ़िर वही पलकों की नमी...

न हवा का रंग सुहाए न खिजा का...
न बूंदों का संग सुहाए न फिजा का...
आज फ़िर वही एहसासों की कमी...
आज फ़िर वही पलकों की नमी...

आज फ़िर वही अपनों की कमी...
आज फ़िर वही पलकों की नमी...

भावार्थ...
(
Dedicated to one of my friends !!!)

Tuesday, December 2, 2008

सोनिये तू !!!

मेरी जिंदडी का सरमाया तू है सोनिये...
मेरी मदहोशी का वो राज तू है सोनिये...
सोनिये तू !!! सोनिये तू !!!

फिजा में बिखरी ताजगी है तू...
हवाओ में सिमटी सादगी है तू ...
फलक तक सजी बहार तू है सोनिये...
मेरी मदहोशी का वो राज तू है सोनिये...

मेरी जिंदडी का सरमाया तू है सोनिये...
मेरी मदहोशी का वो राज तू है सोनिये...
सोनिये तू !!! सोनिये तू !!!

दिल से उठी एक मीठी आवाज़ है तू...
साँसों से उठाये झंकार वो साज है तू...
गीत सा बना मेरा अफ़कार तू है सोनिये...
मेरी मदहोशी का वो राज तू है सोनिये...

मेरी जिंदडी का सरमाया तू है सोनिये...
मेरी मदहोशी का वो राज तू है सोनिये...
सोनिये तू !!! सोनिये तू !!!

मेरे लिए तो खुदा की खुदाई है तू...
मेरी तमन्नाओ की परछाई है तू...
कोरे कागज़ पे रंगों की खिजा तू है सोनिये...
मेरी मदहोशी का वो राज तू है सोनिये...

मेरी जिंदडी का सरमाया तू है सोनिये...
मेरी मदहोशी का वो राज तू है सोनिये...
सोनिये तू !!! सोनिये तू !!!

भावार्थ...

Monday, December 1, 2008

मेरी नाकाम मुहब्बत की कहानी मत छेड...

मेरी नाकाम मुहब्बत की कहानी मत छेड...
अपनी मायूस उमंगों का फ़साना न सुना
जिंदगी तल्ख़ सही, ज़हर सही, सम ही सही...
दर्द-ओ-आजार सही , जब्र सही , ग़म ही सही...
लेकिन इस दर्द-ओ-ग़म-ओ-जब्र की वुसत को तो देख...
ज़ुल्म की छाँव में दम तोरती खल्कात को तो देख...
अपनी मायूस उमंगों का फ़साना न सूना...
मेरी नाकाम मुहब्बत की कहानी मत छेड...
जलसा-गाहों में ये वहशत-ज़दः सहमे अन्बोह...
रहगुज़ारों पे फलाकत ज़दः लोगों के गिरोह...
भूखे और प्यास से पाज़-मुर्दः सियाह-फाम ज़मीन...
तीरह-ओ-तार मकान, मुफलिस-ओ-बीमार मकीन ...
नौ’ऐ-इंसान में ये सरमाया-ओ-मेहनत का ताजाद...
अमन-ओ-तहजीब के परचम टेल कौमों का फसाद...
हर तरफ़ आतिश-ओ-आहन का ये सैलाब-ऐ-अजीम...
नित नए तर्ज़ पे होती हुई दुनिया तकसीम...
लहलहाते हुए खेतों पे जवानी का समान ...
और दहकान के छप्पर में न बत्ती न धुंआ...
ये फलक-बोस मिलें, दिलकश-ओ-सीमीं बाज़ार...
ये घलाज़त ये झपट_ते हुए भूखे बाज़ार...
दूर साहिल पे वो शफ्फाफ मकानों की कतार...
सरसराते हुए परदों में सिमट_ते गुलज़ार...
डर-ओ-दीवार पे अनवार का सैलाब रवां...
जैसे इक शायर-ऐ-मदहोश के ख़्वाबों का जहाँ...
ये सभी क्यों है ये क्या है, मुझे कुछ सोचने दे...
कौन इंसान का खुदा है, मुझे कुछ सोचने दे ...
अपनी मायूस उमंगों का फ़साना न सूना ...
मेरी नाकाम मुहब्बत की कहानी मत छेर...

साहिर लुधियानवी...