Sunday, November 2, 2008

फुर्सत !!!

फुर्सत !!!
अपनी मसरूफियत से कुछ पल चुरा के...
मैं बना रही हूँ फुर्सत....

आसान नही है ये...
इसमे जगह पाने...
बीते सालों की कितनी बातें ...
मेरे सामने चक्कर लगा रही हैं...

याद है...तुम्हारी वो घड़ी जो...
मेरे पास रह गई थी...
फुर्सत में उसकी टिक टिक...
हाय !!परेशान कर दिया है...
वक्त का एहसास ही तो भूलना था कैसे भूलूं ?...

और अब ये किताब के पन्ने...
उड़ उड़ के वहीँआ जाते हैं ...
जहाँ तुम्हारा नाम लिखा है ...
कैसे वो पेन तुम अपने होंठो में दबाये रखते थे ...
नीले पड़ जाते थे होंठ...
मैंने जिस रुमाल से पोंछा था ...
आज तक नही धो पायी तुम्हारी खुशबू ...

सामने खड़ा आइना जिसमें कभी...
मेरी -तुम्हारी...
मतलब हमारी तस्वीर साथ थी....
इस आईने का पानी आंखों में उतर रहा है ...
अब तो ये भी तंग कर रहा है...

और ....याद है
वो पानी जिसके किनारे पे ...
हम डूब गए थे..........
और ये नोटजो तुम्हारी जेब से चुराए थे कभी...
अब इनकी कीमत कुछ बढ़ गई होगी शायद...

ऐ फ़ोन कमबख्त
जब भी बजता हैलगता है..............
हम घंटो बातें करते थे न...
क्या कहते थे???अब तो कुछ भी याद नही ....

जम्हाई लेती हूँ तो...
लगता है तुमने मुहपे हाथ रख दिया हो...
"अरे बस ना कल शायद सोयी नही"...
"मेरे बारे में सोच रही थी न ...
"तब मैंने "ना "कहा था ...
झूठ कहा था ...

मेरे ये हाथ कितनी बार थामे थे ...
टेढी मेढी लकीरें बनाने के बहाने ...
मैं भी अनजान सी बन जाती थी ...
और अब देखो इन लकीरों में ...
तुम्हारा नाम नही ...

काश तब अपने नाम की ...
एक लकीर भी बना देते...
मैं कुरेद कुरेद केहरा रखती...
पर मिटने न देती ...
और क्या मैं और मेरा ...
सब कुछ क्या क्या कहूँ ...
हाँ लगता है मुझे कभी ...

फुर्सत नही दोगे तुम.....

शमा...

1 comment:

Anwar Qureshi said...

उम्दा ...लिखते रहिये ...