Sunday, November 23, 2008

जिन्हें नाज़ है हिंद पे...

ये कूचे ये नीलम घर दिलकशी के...
ये लुटते हुए कारवाँ ज़िन्दगी के...
कहाँ हैं कहाँ है मुह्जिस खुदी के..
जिन्हें नाज़ है हिंद पे...
वो कहाँ हैं कहाँ है कहाँ है ...

ये पुरपेच गलियां ये बदनाम बाज़ार...
ये गुमनाम राही ये सिक्को की झंकार...
ये इस्मत के सौदे ये सौदों पे तकरार....
जिन्हें नाज़ है हिंद पे...
वो कहाँ हैं वो कहाँ है कहाँ है ...

ये सदियों से बेखौफ सहमी सी गलियां...
ये मसली हुई अद्खिली जर कलियन...
ये बिकती हुई खोखली रंगरलियाँ ...
जिनको नाज़ है हिंद पे...
वो कहाँ हैं कहाँ हैं कहाँ हैं ?

वोह ujale दरीचो में पायल की चन चन..
थकी हारी साँसों पे तब्लो की ठन ठन ...
ये बेरूह कमरों में खांसी की आवाज़...
जिहें नाज़ है हिंद पे वो...
कहाँ है कहाँ है कहाँ है...

ये फूलो की गजरे वो पीको के छींटे...
ये बेबाक नज़ारे ये गुस्ताख फितर...
ये ठलके बदन और बीमार चहेरे
जिन्हें नाज़ हैं हिंद पे वो...
कहाँ हैं कहाँ हैं कहाँ है...

यहाँ पीर भी आ चुके और जवान भी...
नौ मंद बेटे और अब्बा मियां भी...
य बीवी है बेटी है और माँ bhii...
जिन्हें नाज़ है हिंद पे वो...
कहाँ है कहाँ है कहाँ है ...

मदद चाहती है ये हवा की बेटी॥
यशोदा की हमजिंस राधा की बेटी...
पागाम्बर की उम्मत जुलेह्खन की बेटी.
जिन्हें नाज़ है हिंद पे वो...
कहाँ है कहाँ है कहाँ है...

जरा मुल्क के रहबरों को बुलाओ॥
ये कूचे ,यह गलियां ये मंजर दिखाओ...
जिन्हें नाज़ है हिंद उनको लाओ...
जिन्हें नाज़ है हिंद पे वो...
कहाँ है कहाँ है कहाँ हैं...


साहिर लुधियानवी...

1 comment:

Dr. Amar Jyoti said...

समाज का कड़वा सच बयान करती नज़्म पढ़वाने के लिये आभार। पर टायपिंग की भूलें बहुत खटकती हैं। कृपया दुरुस्त कर लें।