Tuesday, November 11, 2008

वो सुबह कभी तो आयेगी...

वो सुबह कभी तो आयेगी वो सुबह कभी तो आएगी...
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आँचल ढलकेगा...
जब दुःख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा...
जब अंबर जूम के नाचेगा, जब धरती नगमी जायेगी...
वो सुबह कभी तो आयेगी वो सुबह कभी तो आएगी...

जिस सुबह की खातिर जग जग से, हम सब मर मर कर जीते हैं...
जिस सुबह के अमरिअत की बूँद में, हम जहर के प्याले पिटे हैं...
इन भूखी प्यासी रूहों पर, एक दिन तो करम फरामायेगी...
वो सुबह कभी तो आयेगी वो सुबह कभी तो आएगी...

माना के अभी तेरे मेरे अरमानों की कीमत कुछ भी नहीं ...
मिट्टी का भी हैं कुछ मोल मगर, इंसानों की कीमत कुछ भी नहीं ...
इंसानों की इज्जत जब जूठें सिक्कों में ना तोली जायेगी...
वो सुबह कभी तो आयेगी वो सुबह कभी तो आएगी...

साहिर लुधियानवी...

1 comment:

Anonymous said...

thanks for providing this wonderful poem..on your blog..
shayad aisi subah jaldi ayegi!!