Monday, November 10, 2008

बूंदों को मिला पारदर्शी जिस्म !!!


कोसो तक पहाड़ पे फैली सफ़ेद बर्फ एक चादर सी है...
हवा में ये उड़ती हुई मद्धम सर्दी घुंघराले बादर सी है...

ओस का घहरा समंदर जिस कोहरे के आँचल में है...
वोह फिजा में घुली नशीली हवा की एक नज़र सी है...

जम गई पानी की बूँद बूँद जैसे किसी ने जादू किया हो...
बूंदों को मिला पारदर्शी जिस्म खुदा की कोई मैहर सी है....

ठंडक रूह बनके आस पास हर एक जर्रे में बस चुकी है...
थमी हुई इन्सां की ये सहमी दुनिया सर्दी की कहर सी है....

जमी जमी नदी जो सूरज को देख कभी कभी रेंगती सी है...
हर एहसास जिसमें सुन्न हो जाए ऐसी ठंडी लहर सी है...

भावार्थ...

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