Wednesday, October 8, 2008

मायने ढूढती हूँ जिंदगी के जो मैं !!!

मायने ढूढती हूँ जिंदगी के जो मैं ।
तो लोग पगली कहने लगते हैं।
बुजुर्गो के बिछाये रास्ते जो बदलू।
तो लोग पगली कहने लगते हैं।

मेरी तो सोच का निश्तर ही मेरा खूनी है।
जिस्म भला क्या करे जब रूह ही जुनूनी है।
रोज तन्हाई मुझे अपनी शकले दिखाती है।
कभी अँधेरा तो कभी खामोशी बन के आती है।
दिलके गुबार जो बाहर लाती हूँ।
तो लोग पगली कहने लगते हैं।

मायने ढूढती हूँ जिंदगी के जो मैं ।
तो लोग पगली कहने लगते हैं।

रिश्तो की अहमियत कोई मुझको बतलाये।
अजनबी बंधे खिची रेखाओ से न बाहर आयें।
एहसान चुकने के लिए जन्म एक काफ़ी नहीं।
उमीदे पूरा करने को तो सात जन्म काफ़ी नहीं।
अपनी तरह जीने लगती हूँ जो।
तो लोग पगली कहने लगते हैं।

मायने ढूढती हूँ जिंदगी के मैं ।
तो लोग पगली कहने लगते हैं।

कोई हो जो कुछ पाने की चाह से आजाद हो।
हर चाहत हो मेरी मुझसे जुड़ी हर फरियाद हो।
जिसकी हर दुआ में मेरा नाम शामिल रहे।
मैं उसके जेहेन मैं और वो मेरे दिल मैं रहे।
जब उस शख्स को ढूढने लगती हूँ।
तो लोग पगली कहने लगते हैं।

मायने ढूढती हूँ जिंदगी के मैं ।
तो लोग पगली कहने लगते हैं।
बुजुर्गो के बिछाये रास्ते बदलू।
तो लोग पगली कहने लगते हैं।

भावार्थ

2 comments:

Anonymous said...

bahut achchha hai, jab bhi koi kuch naya karta hai to uska virodh hota hi hai, chahe aapko koi pagli kahe ya kuch aur, purane bandhan ko todkar aap aage adhiye.

---------------Vishal

SILKY said...

words are the same in love in anger ,in truth ,in deceit its only the feeling behind them that matters
ur words are true ....mind it when i say words, its not the content even .....and i wonder how???