Thursday, October 30, 2008

कुछ शेर !!!

कुछ बूँद ही काफ़ी थी इस समंदर में उफान लाने को....
सीला हुआ साहिल काफ़ी न था लहरों को रोक पाने को...
उठ कर गिरते हुए पानी की सीरत मीठी न थी...
हवाओ का रुख काफ़ी था हिलोरों को शोला बनाने को...

दरिया का कतरा कतरा प्यास से कहीं मर न जाए...
साँसों में रोके हुए है नमी सेहरा कहीं उखड न जाए...
पपीहा बूँद की परवाज़ का अरमान लिए जीता है ...
ओस को प्यासा कोहरा धुंध में कही घुल न जाए...

हर एक मंजर यादो के पत्तो से बना है शायद...
हर एक पहर तेरे एहसासों से बना है शायद ...
कितना अजीब सा है मेरा नादान दिल...
जिससे खफा है उसीके वादों से बना है शायद...

लिखता हूँ उसका नाम और फ़िर मिटा देता हूँ...
कैसे कैसे हर रोज में ख़ुद को सजा देता हूँ...
दीवानगी यह नहीं तो और क्या है तू ही बता ...
जलाता है इश्क और मैं साँसों को बुझा देता हूँ...

भावार्थ...

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