Wednesday, September 17, 2008

दिल ही तो है !!! मिर्जा गालिब...

दिल ही तो है न समझो खिश्त।
दर्द से भर न आए क्यों?
रोयेंगे हम हज़ार बार।
कोई हमें सताए क्यों?

गेर नहीं हरम नहीं ।
दर नहीं आस्तां नहीं।
बैठे हैं रहगुज़र पे हम।
गैर हमें हटाये क्यों?

हां वोह नहीं खुदा परिश्त।
हाँ वोह बेवफा सही।
जिसको हो दीनो-दिल अज़ीज़।
उसकी गली में जायें क्यों?

कैदे-ऐ-हयात तो बन्दे गम।
असल दोनों में एक है।
मौत से पहले आदमी।
गम से निजात पाये क्यों?

गालिब खस्ता के बगेर।
कौन से काम बंद हैं।
रोईये जार जार क्या।
कीजये हाय हाय क्यों ?

मिर्जा गालिब...

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