Sunday, September 7, 2008

ये न थी हमारी किस्मत !!! मिर्जा ग़ालिब...

ये न थी हमारी किस्मत की विसाल-ऐ-यार होता।
अगर जीते रहते तो ये ही इंतज़ार होता।

तेरे वादे पर जीए हम तो ये जान झूठ जाना।
की खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता।

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-ऐ-नीम कसक।
यह खलिश कहाँ से होती जो ये जिगर के पार होता।

रगे संग से टपकता जो लहू फ़िर न थमता।
जिसे गम समझ रहे हो ये अगर शरार होता।

कहूँ किससे में की क्या है सब-ऐ-गम बुरी बला है।
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता।

हुए मर के हम जो रुसवा हुए क्यों न गर्क दरिया।
न कभी जनाजा उठता न कहीं मजार होता।

उसे कौन देख सकता कि न यगा है न यकता।
जो दुही की बू जो होती तो कहीं दो-चार होता।

ये मसले तस्सवुफ़ ये तेरा बयान गालिब।
तुझे हम बलि समझते जो न वादा खार होता।

ये न थी हमारी किस्मत की विसाल-ऐ-यार होता।
अगर जीते रहते तो ये ही इंतज़ार होता।

मिर्जा ग़ालिब...