Thursday, September 4, 2008

बेखुदी बेसबब !!! मिर्जा गालिब...

बेखुदी बेसबब नहीं गालिब।
कुछ तो है जिसकी पर्दागारी है।

दिल में जिगा का जो मुकदमा था।
आज फ़िर उसकी रूबकारी है।

फ़िर उसी बेवफा पे मरते हैं।
फ़िर वही जिंदगी हमारी है।

फ़िर दिया पारा-ऐ-दिल ने सवाल।
एक फरियाद आहोजारी है।

फ़िर हुए गवाह इश्क तलब।
अश्क बारी का हुकुम जारी है।

बेखुदी बेसबब नहीं गालिब।
फ़िर कुछ एक दिल को बेकरारी है।

बेखुदी बेसबब नहीं गालिब।
कुछ तो है जिसकी पर्दागारी है।

मिर्जा गालिब...

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