Wednesday, September 3, 2008

नुक्तचिन है दिल !!! मिर्जा गालिब...

नुक्तचिन है दिल उसको सुनाये न बने।
क्या बात बने जहाँ बात बनाये न बने।

गैर फिरता है लिए यु तेरे ख़त कि अगर।
कोई पूछे कि यह क्या है तो छुपाये न बने।

कह सके कौन की यह जलावागिरी किसकी है।
परदा छोड़ा हैं वो उसने कि उठाये न बने।

में बुलाता तो हूँ उसको मगर ऐ जज्बा-ऐ-दिल।
उसपे बन जाए ऐसी की बिन आए न बने।

इश्क पे जोर नहीं है ये वोह आतश गालिब।
की लगाये न लगे और बुझाये न बने।

में भूलता हूँ उसको ऐ जलवाए दिल।
उसपे बन जाए कुछ ऐसी की बनाये न बने।

नुक्तचिन है दिल उसको सुनाये न बने।
क्या बात बने जहाँ बात बनाये न बने।

मिर्जा गालिब...

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