Tuesday, August 19, 2008

गमो की गुल्लक !!!

आज रंज इस कदर बढ़ गया दिल मैं।
कि आंसू की सुखी सी लकीर बन गई।
चुभन चीर गई इस जिस्म को मेरे।
कसक मेरी आहों का साया बन गई।
उसका जुमूद तोड़ गया मेरे जेहेन को।
उसकी बेवफाई मेरी तन्हाई बन गई।
हिज्र कूट कूट कर भर गया इश्क में।
रंजीदा शब् मेरे लहू में ठंडक भर गई।
बीते लम्हे अदावातो के टुकड़े बन गए।
सनम कि हर बात सौदाई बन गई।
सालो से मैंने युही दर्द को संजोया है।
जैसे ख़ास बेशकीमती सिक्के हों कई।
अब मैं एक दर्द भी न सह पाऊँगा।
जो मेरी 'गमो की गुल्लक' थी वो भर गई।

भावार्थ...

उर्दू :
रंज: दर्द
जुमूद: खामोशी
हिज्र: अलगाव, दूरी
रंजीदा: दुखी, दर्द भरा
अदावतों: खूंखार
सौदाई: दर्द भरी

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