Monday, August 25, 2008

शेरो-शायरी: राहत इन्दोरी...

जो दे रहे हैं फल तुम्हे पके पकाए हुए।
वोह पेड़ मिले हैं तुम्हे लगे लगाये हुए।

जमीन ओढ़ के सोये हैं दुनिया में।
न जाने कितने सिकंदर थके थकाए हुए।

यह क्या जरूरी है की गज़ले ख़ुद लिखी जाए।
खरीद लायेंगे कपड़े सिले सिलाये हुए।

हमारे मुल्क में खादी की बरकते हैं मियां।
चुने चुनाए हुए हैं सारे छटे छटाये हुए।
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यह बर्फ रातें भी बन कर धुआं अब उड़ जाएँ।
एक लिहाफ ओदूं तो सर्दियाँ उद्जएं।,

बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पे।
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जायें।

रहे ख्याल की मंस्सोबे इश्क हैं हमलोग।
अगर जमीन से फूके तो आसमान उड़ जाए।

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यह दिल किसी फकीर की हुजरे से कम नहीं।
दुनिया यहीं लाकर छुपा देनी चाहिए।

बीमार को मरज की दवा देनी चाहिए।
में पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए।

अल्लाह बरकतो से नवाजेगा इश्क में।
है जितनी पूँजी लगा देनी चाहिए।

में फूल हूँ तो फूल को गुलदान हो नसीब।
अगर में आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए।

में ख़ाक हूँ तो ख़ाक से चौकियें मुझे।
में नींद हूँ तो जगा देनी चाहिए।

में ताज हूँ तो तो से पे सजाये लोग।
में ख़ाक हूँ तो ख़ाक उदा देनी चाहिए।

सज बात कौन हैं सो सच कह सके।
में कह रहा हूँ मुझे सजा देनी चाहिए।

सौदा यहीं पे होता है हिन्दुस्तान का।
संसद भवन में आग लगा देनी चाहिए।
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तुफानो से आख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो।
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो तेर के दरिया पार करो।
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राहत इन्दौरी...

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