Monday, August 18, 2008

अंदेशे...कैफी आज़मी

रूह बेचैन है इक दिल की अजीयत क्या है।
दिल ही शोला है तो शोज़-ऐ-मोहब्बत क्या है।
वोह मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है।
रंज तो यह है की रो रो कर भुलाया होगा।

वोह कहाँ और कहाँ खौफे-ऐ-गम सोजिश-ऐ-जान।
उसकी रंगीन नज़र और नक्स-ऐ-हिरमान।
उसका एहसास-ऐ-लतीफ़ और शिकस्त-ऐ-अरमान।
तानाज़न एक जमाना नज़र आया होगा।

झुक गई होगी जवाँ -साल उमंगो की जबी।
मिट गई होगी ललक मिट गया होगा यकीन।
छा गया होगा धुंआ घूम गई होगी जमीन।
अपने पहले ही घरोंदे को जो उसने ढाया होगा।

दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होंगे।
अश्क आखों ने पिए और न बहाए होंगे।
बंद कमरे में मेरे ख़त जो जलाये होंगे।
एक एक हर्फ़ जमीन पे उभर आया होगा।

उस ने घबराके नज़र लाख बचाई होगी।
मिटाके एक नक्श ने सौ शकल दिखाई होगी।
मेज से मेरी तस्वीर जब हटाई होगी।
हर तरफ़ मुझको तड़पता हुआ पाया बेम्हाल।

बेमहाल छेड़ पे जज्बात उबाल आये होंगे।
गम पशेमन तबस्सुम मैं ढल आये होंगे।
नाम पे मेरे जब आंसू निकल आये होंगे।
सर न सहेली के कांधे से उठाया होगा।

जुल्फ जिद करके किसी ने बांयी होगी।
रूठे जलवों पे खिजा और भी छायी होगी।
बर्क अशवो ने कई दिनों न गिराई होगी।
रंग चहरे पे कई दिन तक न आया होगा।

होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा।
जहर छुप करके दवा जान के खाया होगा।
वोह मुझे भूल गई इसकी शिकायत क्या है।
रंज तो यह है की रो रो कर भुलाया होगा।

कैफी आज़मी...

अजियत: परेशानी
सोज़-इ-मोहब्बत: कंद ऑफ़ लव
हर्फ़ : शब्द
रंज: दर्द

1 comment:

Anonymous said...

adavarje,irsad hum na kahenge,
Dil jala hai chirage rosan se,
ab to har jalte diye ko hum bujhaya karenge.

BR/-
Regards
ALKESH YADAV
CHHINDWARA(M.P.)