Tuesday, August 12, 2008

आख़िर क्यूँ !!!

टूट कर गिरने का मन करता है।
रेत आख़िर क्यूँ जम नहीं जाता।

उफान
नसों में कई मौत लायेगा।
खून आख़िर क्यों थम नहीं जाता।

अँधेरा
वहसी काफिले को ले आया।
मोम आख़िर क्यों जम नहीं जाता।

डूब
कर कितने रिश्ते मिट जायेंगे।
दरिया आख़िर क्यों रुक नहीं जाता।

मुझे मौत की लोरी से नींद आती है।
खवाब आख़िर क्यों पल नहीं जाता।

भावार्थ...

No comments: