Thursday, July 24, 2008

मेरा माजी !!! मीना कुमारी

मेरा माजी !!!
मेरी तनहा’ई का ये अंधा शिगाफ
ये के साँसों की तरह मेरे साथ चलता रहा।
जो मेरी नब्ज़ की मानिंद मेरे साथ जिया
जिसको आते हु’ऐ जाते हु’ऐ बे-शुमार लम्हे
अपनी संग्लाख उँगलियों से गहरा करते रहे, करते गए
किसी की ओक पा लेने को लहू बहता रहा
किसी को हम-नफस कहने की जुस्तुजू में रहा
को’ई तो हो जो बे-साख्ता इसको पहचानता
तड़प के पलटे, अचानक इसे पुकार उठे।
‘मेरे हम-शाख्मेरे हम-शाख मेरी उदासियों के हिस्सेदार
मेरे अधूरेपन के दोस्तमेरे अकेलेपन।
तमाम ज़ख्म जो तेरे हैं मेरे दर्द तमाम
तेरी कराह का रिश्ता है मेरी आहों से।
तू एक मस्जिद-ऐ-वीरान है, मैं तेरी अजान।
अजान जो अपनी ही वीरानगी से टकरा कर।
थकी छुपी हु’ई बेवा ज़मीन के दामन पर।
पढ़े नमाज़ खुदा जाने किसको सिजदा करे’....


मीना कुमारी...

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