Wednesday, July 23, 2008

कौन सी चाहत है मुझे जो नसीब नहीं !!!

कौन सी चाहत है मुझे जो नसीब नहीं।
मंजिल पे हूँ पर मंजिल के करीब नहीं।

खरीद सकता था जो बाज़ार में मौजूद था।
ढूढता फ़िर रहा हूँ जो वहां हासिल नहीं।

जिंदगी
जीने का हर सलीका मिल गया।
खुशी भर देनी की पर कोई तरकीब नहीं।

हँस के मिलते है मुझसे ये दुनिया वाले।
चंद लम्हे अपने दे ऐसा कोई रकीब नहीं।

चल पड़ी है मेरी जिंदगी अब दरिया बनके।
रोक ले इसको जमाना ये तो मुनासिब नहीं।

भावार्थ...

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