Sunday, July 20, 2008

खुदाई का आलम !!!

दोनों का आशियाँ उसी खुदा ने बनाया है।
उसके यहाँ 'कुछ' रखने की और
मेरे यहाँ 'कुछभी' रखने की जगह नहीं मिलती।

लोग परेशान है हमारे रिश्ते के होने पे।
उसके दामन पे दाग नहीं मिलता
और मेरे दमन पे नेकी नहीं मिलती।

इज़हार करें तो करें कैसे खुदा तू ही बता जरा ?
उसको लम्हों की फुर्सत भी नहीं मिलती
और मुझको एक मोहलत नहीं मिलती।

तकदीर कुछ सोच के बैठी है लगता है।
जब उसकी नज़र मुझसे मिलती है
तो मेरी नज़र उससे नहीं मिलती।

ये खुदाई का आलम नही तो और क्या है।
उसे उड़ने को आसमान नहीं मिलता और
मुझको दफन होनेको जमी नहीं मिलती।

भावार्थ
...

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