Wednesday, June 4, 2008

अधूरी शाख्शियत की मेरी ऐसी तासीर थी !!!

ये बादल आए और चले गए बिन बरसे।
कितनी बेरुख मेरी प्यास की तकदीर थी।

छुप गया चाँद भी कहीं तारो से डर के।
अमावस की आईने में बनी तस्वीर थी।

लोग जो दफनाते थे अब जलाने लगे है।
जमीन इतनी कहाँ की सबको नसीब थी।

खुदा भी नहीं कर पाया मेरे वो सपने पूरे।
अधूरी शाख्शियत की मेरी ऐसी तासीर थी।

भावार्थ...

1 comment:

Renu Sharma said...

umdaa shabdon ka stemaal kiya hai .