Thursday, June 26, 2008

आख़िर जीना इसी का नाम है !!!

हर साख पे उल्लू बौठा है क्यू सोचूँ।
गुलिस्तान का क्या अंजाम है।
दो रुई डाल के चलता हूँ में तो।
आख़िर जीना इसी का नाम है।


मेरे गाल पे जब कोई एक रखता है।
जैसे को तैसा का क्या पैगाम है।
में उसके कंटा पे दो रख देता हूँ।
आख़िर जीना इसी का नाम है।

कौन है पापी यहाँ कोई नहीं।
हर पापी यहाँ तो भजता राम है।
ढोंगी दुनिया सारी है बस ऐसी।
आख़िर जीना इसी का नाम है।

दूसरो का भला करे कौन यहाँ।
अपने सी ही भरा हर इंसान है।
खाओ पियो और सो जाओ।
आख़िर जीना इसी का नाम है।

भावर्थ...

Wednesday, June 25, 2008

रिश्तो की स्याही तो मिटने लगी है !!!

रिश्तो की स्याही तो मिटने लगी है।
धुआं रह गया आग तो बुझने लगी है।

रिश्तो की स्याही तो मिटने लगी है।

नज़र लगी नूर को कोसो दूर से कहीं।
ख़ुद का वजूद वो रातो को खोजने लगी है।

रिश्तो की स्याही तो मिटने लगी है।

दुआ की दवा हुई बे-असर सी अब तो।
बीमारी मेरे मन में अब घर करने लगी है।

रिश्तो की स्याही तो मिटने लगी है।

चार दिन की चांदनी भी नसीब में नहीं शायद।
अंधेरे की चादर जिस्म मेरा ओढ़ने लगी है।

रिश्तो की स्याही तो मिटने लगी है।

भावार्थ...

Sunday, June 22, 2008

जीना इसी का नाम है !!!

दुःख को भूलता जा।
खुशी को ढूढता जा।
चलता जा बस चलता जा।
जीना इसी का नाम है।

रिश्ते टूट जायंगे।
अपने रूठ जायंगे।
तू फिर भी उनको अपना बना।
जीना इसी का नाम है।

बोझ है तो सहता चल।
खौफ है तो डरता चल।
जिंदगी के रंग में ढलता चल।
जीना इसी का नाम है।

काली रात ढल जायेगी।
ताज़ी सुबह भी आएगी।
इसी आशा में डूबी हर शाम है।
जीना इसी का नाम है।

भावार्थ...

धरती का आँचल छुना चाह रहा हो जैसे !!!

बादलो के झरोके से सूरज ताक रहा ऐसे।
धरती का आँचल छुना चाह रहा हो जैसे।

ये धुप बिखरने की जिद करने लगी है।
खेल खेलने को मन मचल रहा हो जैसे।

हवा उड़ उड़ के बादलो को मना रही इस तरह।
की ख़ुद धुप के साथ बह जन चाहती हो जैसे।

आसमान का घर रौनक से खिल खिला रहा है।
किसी जश्न को वो खुलकर मना रहा हो जैसे।

बादलो के झरोके से सूरज ताक रहा ऐसे।
धरती का आँचल छुना चाह रहा हो जैसे।

भावार्थ...

Thursday, June 12, 2008

डरा तूफ़ान जब भी आता है !!!

डरा तूफ़ान जब भी आता है।
थकी हवा सिसक पड़ती है।
धूल घबरा के बिछ जाती है।
डालियाँ युही टूट पड़ती हैं।

डरा तूफ़ान जब भी आता है।
रास्ते अपने निशाँ खोजते हैं।
बस्तियां युही उजाड़ जाती है।
माकन
अपना पता खोजते हैं।

डरा तूफ़ान जब भी आता है।
हस्तियाँ कहीं मिट सी जाती हैं।
रोनके विधवा हो कर रोती हैं।
मस्तियां कहीं डूब सी जाती है।

डरा तूफ़ान जब भी आता है।

भावार्थ...





Monday, June 9, 2008

आगोश में ले जो वोही किनारे ढूढती है !!!

कोरी सी जिंदगी मेरी बहारे ढूढती है।
ख्वाबो के ये मौसम हजारो ढूढती है।

सुबह को बढ़ फलक छूने की चाहत।
बादलों में न कितने नज़ारे ढूढती है।

धुप जो झर झर बरसती है दिन पे।
जलन उसकी जैसे ठिकाने ढूढती है।

थकी शाम अरमानों की आख़िर यहाँ।
आगोश में ले जो वोही किनारे ढूढती है।

जिंदगी की रात ढलते ढलते क्यों जाने।
ख़ुद को सिमेटने के सिरहाने ढूढती है।

भावार्थ...

Thursday, June 5, 2008

Poem for One of my 8yrs old friend..!!!

सितारों का ये अफसाना प्यारा सा।
दिल पे छाए उन राजकुमारों सा।

किंग खान जग जिसको कहता है ।
कि-कि-कि किरन जो करता है।
देवदास बन नशे में डूबा रहता है।

शाहरुख़ लोगो के दिल का दुलारा सा।
सितारों का अफसाना प्यारा सा।

शर्ट को उतार कहीं छोड़ ये आते है।
बोडी शोडी ये अपनी खूब बनते हैं।
ओ ओ जाने जाना ये गुनगुनाते है।

ये सल्लू मियां है सब से न्यारा सा।
सितारों का अफसाना प्यारा सा।

लगान में छक्का था इनका ख़ास।
दिल चाहता में जो बन गया आकाश।
आती क्या खंडाला गाये वो बिंदास।

आमिर है जैसे खुशी का फुवारा सा।
सितारों का अफसाना प्यारा सा।

डॉन बन जो सब को सो डराता है।
शहंशाह बन जो रातो को जाता है।
हर कहनी में जो विजय कहलाता है।

बच्चन है वोलीबुड में उजियारा सा।
सितारों का अफसाना प्यारा सा।

भावार्थ...

Wednesday, June 4, 2008

अधूरी शाख्शियत की मेरी ऐसी तासीर थी !!!

ये बादल आए और चले गए बिन बरसे।
कितनी बेरुख मेरी प्यास की तकदीर थी।

छुप गया चाँद भी कहीं तारो से डर के।
अमावस की आईने में बनी तस्वीर थी।

लोग जो दफनाते थे अब जलाने लगे है।
जमीन इतनी कहाँ की सबको नसीब थी।

खुदा भी नहीं कर पाया मेरे वो सपने पूरे।
अधूरी शाख्शियत की मेरी ऐसी तासीर थी।

भावार्थ...