Wednesday, May 21, 2008

हकीकत अपने नए पैमाने बुन रही है।

ख्वाबो को जीने की तमन्ना घुट रही है।
हकीकत अपने नए पैमाने बुन रही है।

चकाचौंध धुंधला रहा है कोहरे में कहीं।
अंधेरे की रौशनी हर जर्रे मैं बस रही है।

ये खुशबू जैसे दूर कहीं जा कर खड़ी है ।
रोज मर्रा की सादगी आगोश भर रही है।

नए नए लिबास नंगे खड़े है गुमसुम से।
और ये पुरानी पोशाक इठला के मिल रही है।

वो तेजी, वो सलीका आज मर चुके हैं।
और मेरी बुरी आदते उजागर हो रही है।

ख्वाबो को जीने की तमन्ना घुट रही है।
हकीकत अपने नए पैमाने बुन रही है।

भावार्थ...

1 comment:

Renu Sharma said...

aaj insaan naye libas mai hi dikhne laga hai .