Tuesday, May 27, 2008

गुफ्तगू करना जैसे विलुप्त होता जा रहा है !!!

गुफ्तगू करना जैसे विलुप्त होता जा रहा है।
ये इंसान न जाने कौन से रास्ते जा रहा है।

कुछ लम्हे कहना कुछ पल सुनना किसी को।
शयद आज सबसे मुश्किल होता जा रहा है।

फुरसत जैसे गुम हो गई है तेजी की भीड़ में।
अब रुकने का नाम भी नहीं लिया जा रहा है।

लोरी, किस्से और गप्प के कहकहे ढेर हो गए।
और बक बक का नामो निशान मिटता जा रहा है।

सिसकती बातो को सुनना पाप है शायद आज ।
और गुफ्तगू करना जैसे विलुप्त होता जा रहा है।

भावार्थ...

Thursday, May 22, 2008

कुछ तो बात जरूर है !!!

हौसला हार जाता है पर कोशिश नहीं हारती।
कुछ तो बात जरूर है मंजिल के जूनून में।

जिस्म हार जाता है पर ये दिल नहीं हारता।
कुछ तो बात जरूर है इश्क के जूनून में।

फरियाद हार जाती है पर भक्ति नहीं हारती।
कुछ बात तो जरूर है भगवन के जूनून में।

भावार्थ...

भावार्थ...

दो त्रिवेणी...!!!

में जिंदगी के जश्न की चर्चा करता रहा।
न गम, न रोष, न कोई दर्द कहीं इसमें ।

किसी ने ख्वाबो की चादर हटाने को कहा !!!
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कहाँ है दूरी, कहाँ रास्ते टूटे हैं मंजिल के।
कहाँ है अड़चन और कहाँ है कोई रोड़ा।

बाबू रात का अँधेरा तो छटने दो किसी ने कहा !!!
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भावार्थ...

Wednesday, May 21, 2008

हकीकत अपने नए पैमाने बुन रही है।

ख्वाबो को जीने की तमन्ना घुट रही है।
हकीकत अपने नए पैमाने बुन रही है।

चकाचौंध धुंधला रहा है कोहरे में कहीं।
अंधेरे की रौशनी हर जर्रे मैं बस रही है।

ये खुशबू जैसे दूर कहीं जा कर खड़ी है ।
रोज मर्रा की सादगी आगोश भर रही है।

नए नए लिबास नंगे खड़े है गुमसुम से।
और ये पुरानी पोशाक इठला के मिल रही है।

वो तेजी, वो सलीका आज मर चुके हैं।
और मेरी बुरी आदते उजागर हो रही है।

ख्वाबो को जीने की तमन्ना घुट रही है।
हकीकत अपने नए पैमाने बुन रही है।

भावार्थ...

Monday, May 19, 2008

वो !!!

चार दीवारी ओढ़ के बैठी है।
हर आहट पे वो घबराती है।
लाज का बादल न छटता है।
हया की रिमझिम आ जाती है।

लाल होठ और लाल हैं मेहँदी।
लाल मांग और लाल है जोडा।
लाल हुई वह लाज से इतनी।
लाल हुआ मुख न उसने मोडा।

नाजुक कदम हैं उसके इतने।
पड़ते है जमी पे रो पड़ते हैं।
अंग है उसके छुई मुई के कोई।
हवा चले बस मुड़ पड़ते है।

सपनो की बुत है वो।
आशाओ का पैगाम हो कोई।
बहारों की बौछार है।
दुआओं का अंजाम हो कोई।

भावार्थ...

Monday, May 12, 2008

खलिश मिटाने की तरकीब बता दे मौला।


खलिश मिटाने की तरकीब बता दे मौला।
अगन बुझाने की तरकीब बता दे मौला।

किसको देखू और किसके आगे मूंदूं आँखें।
पलको को कुछ ऐसा हुनर सिखा दे मौला।

झूठ है या सच है कहने वाले का अफसाना ।
लबो की हरकत ही समझादे मुझको मौला।

आ न जाए मौत मुझे बस यू चलते चलते ।
बस मंजिल की एक झलक दिखे दे मौला।

कहीं से आ जाए नूर खुदा का आन्खियो में।
मिट जाए हर खलिश और ये तपन मौला।

भावार्थ...



Sunday, May 11, 2008

अँधेरा ..... अजर है.... अँधेरा......अमर है।

काली रात शांत होती है लेकिन लोग फ़िर भी डरते हैं।
शयद इसलिए की अंधेरे का आकार नहीं होता।
या अँधेरा अस्तित्वा को निगलने का हुनर रखता है।
जो भी है अँधेरा प्रकाश से कहीं ज्यादा बलवान है।
















लोग
अंधेरे को असुर और प्रकाश को सुर मानते हैं।
बल्कि अँधेरा पापो को छुपा लोगो का पुण्य करता है।
प्रकाश अंधेरे को ढक सकता है मिटा नहीं सकता।
इसीलिए वह अंधेरे को छोटा साबित करने में लगा है।
हर सुबह वो अपने बुजुर्ग सूरज को ले कर आता है।
पूरे दिन अंधेरे को मिटाने में लगाता है।
पर जैसे ही शाम को सूरज थक जाता है।
अमिट अँधेरा अपना साम्राज्य बिठाता है।
हालांकि कुछ नन्हें तारे कुछ कुछ कोशिश करते हैं।
उनके साथ तो अँधेरा सिर्फ़ आँख मिचोली खेलता है।
अँधेरा बड़ा है पर उसमें घमंड नहीं है।
वो शक्तिमान है पर दिख्याई नहीं देता।
अँधेरा ..... अजर है.... अँधेरा......अमर है।

Saturday, May 10, 2008

मुझे रह रह कर वाफाओ की नींव याद आई।

आज जब मेरे रिश्तो की इमारत डगमगायी।
मुझे रह रह कर वाफाओ की नींव याद आई।

न जाने कौन सा सामान रख छोडा था मैंने।
मेरी यादो की हर ईंट ने रो रो कर दी है दुहाई।

क्यों मैंने कभी कसक की खिड़की नहीं खोली।
वही से बेवफाई की सिली हवा है भीतर आई।














हर
खुशी का दरवाजा शक के दीमक से है टुटा।
तभी तो खुशी की सौगात यहाँ नहीं बिखर पायी।

एहसासों का गारा भी झड़ झड़ गिरता है कौनो से।
अश्क की सीलन है जैसे दिल की छत पे है छाई।

मैंने जब प्यार का सामान ही नहीं बटोरा घर में।
तभी तो मेरे आगोश में लौट कर आई है तन्हाई।

भावार्थ...

Friday, May 9, 2008

दूर कहीं नरक की हालत कैसी होगी !!!

शहर की जिंदगी देख पता चलता है।
दूर कहीं नरक की हालत कैसी होगी।
भीड़ जो बढ़ती है चाहे जिस तरफ़ देखो।
उसमे पनपती बैचेनी सोचो कैसे होगी।
ये धुआं हवा में हवा से कहीं ज्यादा है।
हर पल जाती साँस की हालत क्या होगी।
बंद घरो में घुटते बच्चो का तो सोचो।
विश्व भविष्य नस्ल न जाने कैसी होगी।
समय है पैसा, और पैसा है सबसे उपर।
सोचो ऐसे में रिश्तो की दशा क्या होगी।
बादल बरसे न बरसे पर गमगीन शमा है।
खुशी को तरसी कॉम की हालत क्या होगी।
ये उदासी, ये गमी , ये दुःख और ये बैचैनी।
दूर कहीं नरक की हालत कैसी होगी।

भावार्थ...

पेडो की सिसकियाँ रात भर सुनी मैंने।

पेडो की सिसकियाँ रात भर सुनी मैंने।
सुबह तलक रोते रहे और कहते रहे वो।
न जाने कौन सी बद्दुआ मिली है हमको।
न कह सकेकुछ और न ही चल सके वो।
दायरा उनका कहाँ है वो तो हवा का है।
उनके पत्ते उसी के साथ उड़ते जाते हैं।
न त्यौहार न जश्न बस एक लम्बी उदासी।
जिंदा होने का एहसास इससे बुरा क्या होगा।
न ख़ुद को बचा सकते न ख़ुद को मिटा सकते।
कोई भी आए औजार उठाये और हस्ती मिटाए।
और वो चुप चाप अपनी बलि देते हैं। ....

Sunday, May 4, 2008

ख्वाबो ने ख़ुद की परवरिश की जिद की है !!!

अरमानों ने खोयी आवाज की जिद की है।
ख्वाबो ने ख़ुद की परवरिश की जिद की है।

कितना
गम रहा होगा उसके सीने में।
समंदर ने भी आज डूबने की जिद की है।

इतना
रुलाया उसको अपनों ने जहाँ में।
रिश्तो ने अजनबी बनने की जिद की है।

डर गया खुदा भी कॉम का खून देख कर।
उसने ख़ुद को बुत में बदलने की जिद की है।

रात की कमर झुक गई लोगो ढोते ढोते।
उसने चांदनी को मिटने की जिद की है।

कोई तो हो जो होसला दे जिंदगी का दोस्त।
वरना साँसों ने ख़ुद को रोकने की जिद की है।

भावार्थ....

Friday, May 2, 2008

रुकी हवा को तूफ़ान बनने में न देर लगे !!!

हँसते इंसा को हेंवा बनने में न देर लगे।
रुकी हवा को तूफ़ान बनने में न देर लगे।

न थामो तुम इन अश्कों को अपनी आखों में।
इस दरिया को समुन्द्र बनने में न देर लगे।

चल ले जब तक चल सकता है तू ऐ रही।
मंजिल को बस रस्ता बनने में न देर लगे।

हाथ जोडले या पढ़ले नमाज जो चाहे तू।
खुदा को पत्थर से झगड़ने में न देर लगे।

कौन है अपना है कौन पराया महफ़िल में।
लोगो को दिल का पला बदलने में न देर लगे।

पगला है तू जो तयारी करता है सदियों की।
सालो को एक लम्हा बनने में न देर लगे।

भावार्थ...

Thursday, May 1, 2008

कोई खुदा को सोचे और कोई तो इस्लाम बचाए !!!

कोई तो दुआ करे और कोई तो मन्नत मांगे।
कोई तो रजा रखे और कोई तो जन्नत मांगे।

कोई तो सलत पढे कोई तो सर को झुकाए।
कोई तो इल्म गढे और कोई तो फूल चढाये।

कोई तो कुरान पढे और कोई तो रोजे खोले।
कोई तो खुदाई जपे कोई तो तसलीम बोले।

कोई तो हज को मक्का जाए कोई तो काबा देखे।
कोई तो तल्बिया बोले और कोई सफा-मरवा देखे।

कोई तो जिरह करे और कोई तो फतवा लाये।
कोई खुदा को सोचे और कोई तो इस्लाम बचाए।

भावार्थ...

तल्बिया: Prayer while devotee goes to मक्का

सफा-मरवा: Two small mountains in मक्का
इल्म: knowledge
सलत: prayer
तसलीम : Greeting after namaz