Saturday, April 12, 2008

दुनिया की तकदीर की लकीर !!!

इस भीड़ की तासीर अजीब सी है।
हर कोई अपनी तन्हाई में खुश है।
जैसे प्यार खुश्क हो गया हो।
रिश्तो में जैसे दीमक लग गया हो।
वादों को किसी ने तोडा नहीं कत्ल किया है।
वफ़ा ने प्यार को छोड़ वासना को थमा है ।

अबे
सुनाई नहीं देता। अबे दिखाई नहीं देता.....
हर कोई भीड़ में इक दूसरे को बोलता दिखता है।
चीख इतनी हैं कि हर इन्सान बहरा हो जाए।
नामुमकिन हैं कोई किसी पे मेहरबा हो जाए।

दोस्ती फीकी पड़ती नज़र आ रही है...
'जैसे को तैसा' कि सोच इसको भीतर से खा रही है।
हर किसी को दूसरे से उम्मीद है पर।
ख़ुद किसी उम्मीद को छूना नहीं चाहते।
जब मन करे दोस्ती कि दुहाई दे दो।
दोस्ती के लिए कुछ पल देना नहीं चाहते।

काया का काया पलट हो चुका है...
आलस ने मन में अधिकार कर लिया है।
ये पुरी भीड़ के भीड़ बीमार है।
तन्हाई को सबने ही स्वीकार कर लिया है।

दुनिया की तकदीर की लकीर।
न जाने किस तरफ़ मुड़ रही है...
भावार्थ॥

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