Tuesday, April 1, 2008

जिंदगी ऐसी सूरत भी दिखायेगी सोचा न था !!!

जिंदगी ऐसी सूरत भी दिखायेगी सोचा न था।
हर धागा खुशी का यू उल्झायेगी सोचा न था।

युही घंटो गुजर जाते है भीड़ में चलते चलते।
अपनों से कुछ पल न मिल पायेंगे सोचा न था।

अब खुशियों को बाज़ार में ढूढ़ता फिरता हूँ में।
घर की खुशियाँ इस तरह बिखर जायेंगी सोच न था।

कौन सा जश्न मना रहा हूँ में हर रोज पता नहीं मुझे।
त्यौहार घर के सभी वीराने हो जायेंगे सोचा न था।

कौन सी ख्वाइश है ये जो पुरी नहीं होती सालो से।
माँ की आँखे जुदाई से भीग जायेगी यू सोचा न था।

न जाने खुदा क्या है न पता है भगवान् का जिंदगी में।
आस्था की बाती इस कदर बुझ जायेगी सोचा न था।

मस्ती के दौर जो चलते है अजनबियों के साए में।
दोस्तो के कह-कहे बिछुड़ जायेंगे कभी सोचा न था।

कुछ कर गुज़रने की तमन्ना भी ये अजीब सी निकली।
तन्हाई इस कदर भर जायेगी जिंदगी में सोचा न था।

भावार्थ...

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