Monday, March 3, 2008

असली तोहफा तो नाराजगी रही !!!

अपनी अर्धांगिनी को उदास देख।
उसकी नाराजगी को टटोला।
उसकी उनकाही बातों ने आज।
न खुलने वाला राज खोला।

वो उदास है मेरे इकरार से।
मेरे इस झूठे प्यार से।
मेरे भीतर के इंसान से।
और इस अंदाजे इजहार से।

सालो उसने मुझे जानने में बिताये।
गलतियों पे शौल लपेटी।
मेरे बाहरी एहसास में फ़िर।
उसने कहीं खुशियाँ सिमेटी ।

मेरे शौको में उसका दम घुटता है।
मेरे नज़रिओं में धुंध है।
मुझे सलीको से बैर है।
मेरी सोच भी जैसे बंद है।

दर्द का एहसास मुझे नहीं होता।
मेरा प्यार हवस का रूप है।
में जैसे किसी नौटंकी का भांड हूँ ।
मुस्कान के पीछे मेरा कुरूप है।

कब तक आख़िर वो खेल खेले।
बिस्तर के लिए तू कोई शादी नहीं करता।
जब वजूद ही अपना अस्तित्व खो रहा हो।
तो उस दीमक को कोई नहीं सहता।

वो ये उफान उडेल कर मुड़ गई।
मेरे सामने नहीं कोई सूरत रही।
में उसके लिए तोहफा लाया था पर।
असली तोहफा तो नाराजगी रही।

भावार्थ ...

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