Tuesday, February 19, 2008

मेरे सपने हैं, जो न जाने कहाँ से तुझे ढूढ़ लाते हैं।

जब भी तेरी बात चलती है लफ्ज़ सुख जाते हैं।
बातें जाया लगती हैं, किस्से हम भूल जाते हैं।

न जाने क्या होगा सबब मेरी मोहब्बत का मेरे खुदा।
चाहत उठती तो है, पेर ये अरमा तभी छूट जाते हैं।

मेरे जिस्म की क्या थी बिसात तुझसे इश्क करने की।
मेरे सपने हैं, जो न जाने कहाँ से तुझे ढूढ़ लाते हैं।

आना तभी मेरे आगोश में जब तुम चाहो मुझे मेरी हद तक।
वरना सिर्फ़ चाहने वालों के दिल यहाँ टूट जाते हैं।

भावार्थ ...

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