Wednesday, February 13, 2008

भावार्थ की त्रिवेणी पार्ट-३ ...

हेल्प !! हेल्प !! हेल्प !! हेल्प हेल्प !!

में चिल्लाता रहा उस रोज सुबह ।

पर वो अनपढ़ मुझे(पेड़) कुल्हाडी से काटता ही रहा !!!

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ज़माने ने तुझे मुझसे न कभी मिलने दिया।

लोग ही लोग हैं, उनकी झिझक थी तुमको।

आ जाओ अब मेरी कब्र किसी वीराने में बनी है !!!

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महंगे तोहफे, हीरे के हार ही मांगती है मुझसे वो।

उसे मालूम है में बस एक चीज़ दे सकता हूँ।

पर उसको दीवानापन, पागलपन पसंद नहीं !!!

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भावार्थ...

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