Thursday, February 21, 2008

इन नज़मो को किसी को मैं सुनाना नहीं चाहता !!!

इन नज़मो को किसी को मैं सुनाना नहीं चाहता।
इन लिखे अल्फजों को यू गुनगुनाना नहीं चाहता।

जहाँ छुपा के रखे हैं मैंने तेरी यादों के फूल सारे।
उस गुलज़ार से मैं कोई फूल चुनना नहीं चाहता।

यह नज़मे मेरे आँसू की तरह निकली हैं दिल से ।
कोई देख न ले इन्हे इसलिए में रोना नहीं चाहता।

चलता रहता हूँ तो नज्में थमी रहती है सोच में कहीं।
बह ना जाएं ये कहीं, इसलिए में रुकना नहीं चाहता।

तेरा प्यार में लिखी नज्मों की बोली तो लग रही है पर।
बेजान भूख की खातिर में इनको बेचना नहीं चाहता।

भावार्थ...

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